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________________ १६८ श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला . करके घर से बाहर निकले । सब एक जगह इकट्ठे हुए। नगर के बीच से होते हुए कोष्टक नामक चैत्य में भगवान् के समीप 'पहुँचे। वन्दना नमस्कार करके पर्युपासना करने लगे । भगवान् ने धर्म का उपदेश दिया। वे सब श्रावक धर्मकथा सुन कर बहुत प्रसन्न हुए । वहाँ से उठकर भगवान् को वन्दना की । फिर शंख के पास आकर कहने लगे- हे देवानुप्रिय ! कल आपने हमें कहा था, पुष्कल आहार आदि तैयार करायो । फिर हम लोग पाक्षिक पौषध का आराधन करेंगे। इसके बाद आप पौधशाला में पोसा लेकर बैठ गए। इस प्रकार आपने हमारी अच्छी हीलना (हाँसी) की । इस पर श्रमण भगवान् महावीर ने श्रावकों को कहा- हे आर्यो! आप लोग शंख की हीलना, निन्दा, खिंसना, गहना या अवमानना मत करो, क्योंकि शंख श्रमणोपासक मियधर्मा और धर्मा है। इसने प्रमाद और निद्रा का त्याग करके ज्ञानी की तरह सुदक्खजागरिया (सुदृष्टि जागरिका) का आराधन किया है । गौतम स्वामी के पूछने पर भगवान् ने बताया जागरिकाएं तीन हैं। उनका स्वरूप नीचे लिखे अनुसार है(१) बुद्ध जागरिका - केवलज्ञान और केवलदर्शन के धारक अरिहन्त भगवान् बुद्ध कहलाते हैं। उनकी प्रमाद रहित अवस्था को बुद्धजागरिका कहते हैं । (२) अबुद्धजागरिका - जो अनगार ईर्यादि पाँच समिति, तीन गुप्ति तथा पाँच महाव्रतों का पालन करते हैं, वे सर्वज्ञ न होने के कारण अबुद्ध कहलाते हैं। उनकी जागरणा को अबुद्धजागरिका कहते हैं । (३) सुदक्खु जागरिया (सुदृष्टिजागरिका) - जीव, अजीव आदि
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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