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________________ १६२ श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला हैं । संघमेरु में भी अरिहन्त, सिद्ध, प्राचार्य, उपाध्याय और सवे साधुओं का गुणग्राम करते हुए श्रावक मोर हैं। वे भी भगवान् की भक्ति और गुणग्राम से बहुत प्रसन्न होते हैं। मेरु पर्वत के शिखर बिजलियों से चमकते रहते हैं। संघमेरु के प्राचार्य उपाध्यायादि पदवी धारी शिखर विनय से नमे हुए साधु रूपी बिजलियों से चमक रहे हैं। विनय आदि तप के द्वारा दीप्त होने के कारण साधुओं को बिजली कहा है। मेरु पर्वत में विविध प्रकार के कल्पवृक्षों से भरे हुए कुसुमों से व्याप्त अनेक वन हैं। संघ मेरु में विविध गुण वाले साधु कल्पवृक्ष हैं क्योंकि वे विशेष कुल में उत्पन्न हुए हैं तथा परमसुख के कारणभूत धर्म रूपी फल को देने वाले हैं । साधु रूपी कल्परतों द्वारा उपदेश किया गया धर्म फल के समान है । नाना प्रकार की ऋद्धियाँ कुल हैं और अलग अलग गच्छ वन हैं। मेरु पर्वत पर वैडूर्यमणि की चोटी है, वह चमकीली तथा निर्मल है । संघमेरु की ज्ञान रूपी चूड़ा है। वह भी दीप्त है और भव्य जनों के मन को हरण करने वाली होने से विमल है। इस प्रकार संघ रूपी मेरु के महात्म्य को मैं नमस्कार करता हूँ। ( नन्दी पीटिका गाथा ४-१७ मलयगिरि टीका )
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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