SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 184
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला अर्थात् सम्पूर्ण जगत् के जीवों की रक्षा रूप दया के लिए ही भगवान् ने प्रवचन कहे हैं अर्थात् सूत्र फरमाए हैं। (१२) विमुती (मुक्ति)- संसार के सब बन्धनों से मुक्त कराने वाली होने से हिंसा विमुक्ति कही जाती है । (१३) खन्ती ( क्षान्ति) - क्रोध का निग्रह कराने वाली । (१४) सम्मत्ताराहणा ( सम्यक्त्वाराधना आराधना कराने वाली । • समकित की १५२ (१५) महंती ( महती)- सब धर्मों का अनुष्ठान रूप होने से हिंसा महंती कहलाती है, क्योंकि एक्कं चिय एत्थ वयं निद्दिद्धं जिणवरेहिं सव्वेहिं । पाणाइवायविरमणमवसेसा तस्स रक्खट्ठा ॥ १ ॥ अर्थात् वीतराग देव ने प्राणातिपात विरमण (अहिंसा) रूप एक ही व्रत मुख्य बतलाया है। शेष व्रत तो उसकी रक्षा के लिए ही बतलाए गए हैं 1 (१६) बोही (बोधि) - सर्वज्ञ प्ररूपित धर्म की प्राप्ति कराने वालो होने से हिंसा बोधिरूप है अथवा अहिंसा का अपर नाम अनुकम्पा है। अनुकम्पा बोधि (समकित ) का कारण है । इसलिए हिंसा को बोधि कहा गया है। (१७) बुद्धी (बुद्धि)- अहिंसा बुद्धिप्रदायिनी होने से बुद्धि कहलाती है, क्योंकि कहा है बावन्तरिकला कुसला पंडियपुरिसा पंडिया चेव । सव्व कलाएं पवरं जे धम्म कलं न याति ॥ १ ॥ अर्थात् - सब कलाओं में प्रधान अहिंसा रूप धर्मकला से अनभिज्ञ पुरुष शास्त्र में वर्णित पुरुष की ७२ कलाओं में प्रवीण होते हुए भी अपण्डित ही है । (१८) पित्ती (धृति) - हिंसा चित्त की दृढ़ता देने वाली होने
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy