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________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला (६)आनप्राण या श्वासोच्छ्वास वर्गणा-साँस के रूप में परिणत होने वाले परमाणुओं का समूह । (७) मनोवर्गणा- मन रूप में परिणत होने वाले पुद्गल परमाणुओं का समूह। (८) कार्मण वर्गणा- कर्म रूप में परिणत होने वाले पुद्गल परमाणुओं का समूह। ___ इन वर्गणाओं में औदारिक की अपेक्षा वैक्रियक तथा वैक्रियक की अपेक्षा आहारक,इस प्रकार उत्तरोत्तर मूक्ष्म और बहुपदेशी हैं। प्रत्येक वर्गणा के ग्रहण योग्य, अयोग्य और मिश्र के रूप से फिर तीन भेद हैं। प्रदेशों की अपेक्षा से संख्यात, असंख्यात तथा अनन्त भेद हैं। विस्तार विशेषावश्यक भाप्य आदि ग्रन्थों से जान लेना चाहिए। (विशेषावश्यक भाष्य गाथा ६३१, नियुक्ति गाथा ३८-३६) ६१८- पुद्गलपरावर्तन आठ श्रद्धा पल्योपम की अपेक्षा से वीस कोड़ाकोड़ी सागरोपम का एक कालचक्र होता है। अनन्त कालचक्र बीतने पर एक पुद्गलपरावर्तन होता है । इसके आठ भेद हैं (१) बादर द्रव्यपुद्गलपरावर्तन (२) मूक्ष्म द्रव्यपुद्गलपरावर्तन (३) वादर क्षेत्रपुद्गलपरावर्तन (४) सूक्ष्म क्षेत्रपुद्गलपरावतेन (५) बादर कालपुद्गलपरावर्तन (६) सूक्ष्म कालपुद्गलपरावर्तन (७) बादर भावपुद्गलपरावर्तन (८) मूक्ष्म भावपुद्गलपरावर्तन । (१)बादर द्रव्यपुद्गलपरावर्तन-औदारिक,वैक्रिय,तेजस,भाषा, श्वासोच्छ्वास, मन और कार्मण वर्गणा के परमाणुओं को सूक्ष्म तथा बादर परिणमना के द्वारा एक जीव औदारिक आदि नोकर्म अथवा कार्मण से अनन्त भवों में घूमता हुआ जितने काल में ग्रहण करे, फरसे तथा छोड़े, उसे बादर द्रव्यपुद्गलपरावर्तन कहते हैं। पहिले गृहीत किए हुए पुद्गलों को दुबारा ग्रहण करना
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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