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________________ १३४ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला इन पाठ कृष्णराजियों में पूर्व पश्चिम की बाह्य दो कृष्णराजियाँ षट्कोणाकार हैं एवं उत्तर दक्षिण की बाह्य दो कृष्णराजियाँ त्रिकोणाकार हैं। अन्दर की चारों कृष्णराजियाँ चतुष्कोण हैं। कृष्णराजि के आठ नाम हैं- (१) कृष्णराजि (२) मेघराजि (३) मघा (४) माघवती (५) वातपरिया (६) वातपरिक्षोभा (७) देवपरिघा (८) देवपरिक्षोभा। काले वणे की पृथ्वी और पुद्गलों के परिणाम रूप होने से इसका नाम कृष्णराजि है । काले मेघ की रेखा के सदृश होने से इसे मेघराजि कहते हैं । छठी और सातवीं नारकी के सदृश अंधकारमय होने से कृष्णराजि को मघा और मायवती नाम से कहते हैं। आँधी के सदृश सघन अंधकार वाली और दुर्लध्य होने से कृष्णराजि वातपरिघा कहलाती है। आँधी के सदृश अंधकार वाली औरक्षोभका कारण होने से कृष्णराजि को वात परिक्षोभा कहते हैं । देवता के लिये दुर्लध्य होने से कृष्णराजि का नाम देवपरिया है और देवों को क्षुब्ध करने वाली होने से यह देवपरिक्षोभा कहलाती है। ___ यह कृष्णराजि सचित अचित्त पृथ्वी के परिणाम रूप है और इसीलिये जीव और पुद्गल दोनों के विकार रूप है। ____ये कृष्णराजियाँअसंख्यात हजार योजन लम्बी और संख्यात हजार योजन चौड़ी हैं । इनका परिक्षेप (घेरा)असंख्यात हजार योजन है। (ठाणांग ८, सूत्र ६२३ ) (भगवती शतक ६ उद्देशा । ) (प्रवचन सारोद्धार गाथा १४४१ से १४४४) ६१७- वर्गणा आठ समान जाति वाले पुद्गल परमाणुओं के समूह को वर्गणा कहते हैं । पुद्गल का स्वरूप समझने के लिए उसके अनन्तानन्त परमाणुओं को तीर्थङ्कर भगवान् ने बाँट दिया है, उसी विभागको
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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