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________________ ११८ श्री सेठिया जेन प्रन्थमाला चञ्चल हो जायगा। ओठ विल्कुल बन्द हो । दृष्टि नाक के अग्रभाग पर जमी हो । ऊपर के दान्त नीचे वालों को न छूते हों। प्रसन्न मुख से पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ मुँह करके प्रमादरहित होते हुए अच्छे संस्थान वाला ध्याता ध्यान में उद्यत हो। (४) प्राणायाम- योग का चौथा अङ्ग प्राणायाम है । प्राण अर्थात् श्वास के ऊपर नियंत्रण करने को प्राणायाम कहते हैं। इसका विस्तृत वर्णन बोल संग्रह के द्वितीय भाग, प्राणायाम सात बोल नं० ५५६ में दे दिया गया है। (५) प्रत्याहार- योग का पाँचवां अङ्ग प्रत्याहार है। इस का अर्थ है इकट्ठा करना । मन की बाहर जाने वाली शक्तियों को रोकना और उसे इन्द्रियों की दासता से मुक्त करना । जो व्यक्ति अपने मन को इच्छानुसार इन्द्रियों में लगा या उनसे अलग कर सकता है वह प्रत्याहार में सफल है। इसके लिए नीचे लिखे अनुसार अभ्यास करना चाहिए। कुछ देर के लिए चुपचाप बैठ जाओ और मन को इधर उधर दौड़ने दो । मन में प्रतिक्षण ज्वार सा आया करता है । यह पागल बन्दर की तरह उचकने लगता है। इसे उचकने दो। चुपचाप बैठे इसका तमाशा देखते जाओ। जब तक यह अच्छी तरह न जान लिया जाय कि मन किधर जाता है, वह वश में नहीं होता। मन को इस तरह स्वतन्त्र छोड़ देने से भयंकर से भयंकर विचार उठेंगे । उन्हें देखते रहना चाहिए । कुछ दिनों बाद मन की उछल कूद अपने आप कम होने लगेगी और अन्त में वह बिल्कुल थक जायगा । रोज अभ्यास करने से इसमें सफलता मिल सकती है। इस प्रकार अभ्यास द्वारा मन को वश में करना प्रत्याहार है। (६) धारणा-धारणा का अर्थ है मन को दूसरी जगह से हटा
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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