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________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला और कुष्ठ आदि बीमारियों कोदर करने की विधि बताने वाला तंत्र। (३) शालाक्य- गले से ऊपर अर्थात् कान, मुंह, आँख, नाक वगैरह की बीमारियाँ, जिन की चिकित्सा में सलाई की जरूरत पड़ती हो, उन्हें दूर करने की विधि बताने वाला शास्त्र। (४) शल्यहत्या-शल्य अर्थात् कांटा वगैरह उनकी हत्या अर्थात् बाहर निकालने का उपाय बताने वाला शास्त्र । शरीर में तिनका, लकड़ी, पत्थर, धूल, लोह, हड्डी, नख आदि चीजों के द्वारा पैदा हुई किसी अङ्ग की पीड़ा को दूर करने के लिए भी यह शास्त्र है। ( ५ ) जोली- विष को नाश करने की औषधियाँ बताने वाला शाख । साँप, कीड़ा, मकड़ी वगैरह के विप को शान्त करने के लिए अथवा संखिया वगैरह विषों का असर दूर करने के लिए। (६) भूतविद्या- भूत पिशाच वगैरह को दूर करने की विद्या बताने वाला शास्त्र । देव, असुर, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस. पित, पिशाच, नाग आदि के द्वारा अभिभूत व्यक्ति की शान्ति और स्वस्थता के लिए उस विद्या का उपयोग होता है। (७) क्षारतन्त्र-शुक्र अर्थात् वीर्य के क्षरण को क्षार कहते हैं । जिस शास्त्र में यह विषय हो उसे तारतन्त्र कहते हैं। सुश्रुत आदि ग्रन्थों में इसे वाजीकरण कहा जाता है। उसका भी अर्थ यही है कि जिस मनुष्य का वीर्य क्षीण हो गया है उसे वीर्य बढ़ाकर हृष्ट पुष्ट बना देना। ( 2 ) रसायन शास्त्र- रस अर्थात् अमृत की आयन अर्थात प्राप्ति जिस से हो उसे रसायन कहते हैं, क्योंकि रसायन से वृद्धावस्था जल्दी नहीं आती, बुद्धि और आयु की वृद्धि होती है और सभी तरह के रोग शान्त होते हैं। (ठाणांग, सूत्र ६११) ६०१- योगांग आठ चित्त वृत्ति के निरोध को योग कहते हैं । अर्थात् चित्त की
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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