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________________ ९८ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला जिसके द्रव्यात्मा होती है उसके चारित्रात्मा की भजना है। विरति वाले द्रव्यात्मा में चारित्रात्मा पाई जाती है। विरति रहित संसारी और सिद्ध जीवों में द्रव्यात्मा होने पर भी चारित्रात्मा नहीं पाई जाती किन्तु जिस जीव के चारित्रात्मा है उसके द्रव्यात्मा नियम से होती ही है। द्रव्यात्मत्व के बिना चारित्र संभव ही नहीं है। जिसके द्रव्यात्मा होती है उसके वीर्यात्मा की भजना है। सकरण वीर्य रहित सिद्ध जीवों में द्रव्यात्मा है पर वीर्यात्मा नहीं है । संसारी जीवों के द्रव्यात्मा और वीर्यात्मा दोनों ही हैं, परन्तु जहाँ वीर्यात्मा है वहाँ द्रव्यात्मा नियम रूप से रहती ही है । वीर्यात्मा वाले सभी संसारी जीवों में द्रव्यात्मा होती ही है। ___ सारांश यह है कि द्रव्यात्मा में कषायात्मा, योगात्मा, ज्ञानात्मा चारित्रात्मा और वीर्यात्मा की भजना है पर उक्त आत्माओं में द्रव्यात्मा का रहना निश्चित है। द्रव्यात्मा और उपयोगात्मा तथा द्रव्यात्मा और दर्शनात्मा इनमें परस्पर नित्य सम्बन्ध है। इस प्रकार द्रव्यात्मा के साथ शेष सात आत्माओं का सम्बन्ध है। ___ कषायात्मा के साथ आगे की छः आत्माओं का सम्बन्ध इस प्रकार है- जिस जीव के कपायात्मा होती है उसके योगात्मा नियम पूर्वक होती है। सकषायी आत्मा अयोगी नहीं होती। जिसके योगात्मा होती है उसके कषायात्मा की भजना है, क्योंकि सयोगी आत्मा सकपायी और अकषायी दोनों प्रकार की होती है। जिस जीव के कषायात्मा होती है उसके उपयोगात्मा नियम पूर्वक होती है क्योंकि उपयोग रहित के कषाय का अभाव है। किन्तु उपयोगात्मा वाले जीव के कषायात्मा की भजना है, क्योंकि ग्यारहवें से चौदहवें गुणस्थान वाले तथा सिद्ध जीवों में उपयोगात्मा तो है पर उनमें कषाय का अभाव है। जिसके कषायात्मा होती है उसके ज्ञानात्मा की भजना है।
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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