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________________ ८८ श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला किया जा सकता है। विकास के सर्वोच्च शिखर पर पहुँच कर हम परमात्म स्वरूप को प्राप्त कर सकते हैं। यों पूर्ण विकास के लिये कर्मवाद से अपूर्व प्रेरणा मिलती है। ___ जीवन विन, बाधा, दुःख और आपत्तियों से भरा है । इनके आने पर हम घबरा उठते हैं और हमारी बुद्धि अस्थिर हो जाती है। एक ओर बाहर की परिस्थिति प्रतिकूल होती है और दूसरी ओर घबराहट और चिन्ता के कारण अन्तरंग स्थिति को हम अपने हाथों से बिगाड़ लेते हैं । ऐसी अवस्था में भूल पर भूल होना स्वाभाविक है । अन्त में निराश होकर हम आरंभ किये हुए कामों को छोड़ बैठते हैं । दुःख के समय हमरोते चिल्लाते हैं । बाह्य निमित्त कारणों को हम दुःख का प्रधान कारण समझने लगते हैं और इसलिये हम उन्हें भला बुरा कहते और कोसते हैं। इस तरह हम व्यर्थ ही क्लेश करते हैं और अपने लिये नवीन दुःख खड़ा कर लेते हैं। ऐसे समय कर्म सिद्धान्त ही शिक्षक का काम करता है और पथभ्रष्ट आत्मा को ठीक रास्ते पर लाता है। वह बतलाता है कि आत्मा अपने भाग्य का निर्माता है । सुख दुःख उसी के किये हुए हैं। कोई भी बाह्य शक्ति आत्मा को सुख दुःख नहीं दे सकती। वृक्ष का मूल कारण बीज है और पृथ्वी, पानी, पवन आदि निमित्त मात्र हैं। उसी प्रकार दुःख का बीज हमारे ही पूर्वकृत कर्म हैं और बाह्य सामग्री निमित्त मात्र है । इस विश्वास के दृड़ होने पर आत्मा दुःख और विपत्ति के समय नहीं घबराता और न विवेक से ही हाथ धो बैठता है । अपने दुःख के लिये वह दूसरों को दोष भी नहीं देता। इस तरह कर्मवाद आत्मा को निराशा से बचाता है, दुःख सहने की शक्ति देता है, हृदय को शान्त और बुद्धि को स्थिर रख कर प्रतिकूल परिस्थियों का सामना करने का पाठ पढ़ाता
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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