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________________ भी सेठिया जैन प्रन्धमाला का व्यापार विसंवादन योग है । इसका अभाव अर्थात् मन, वचन और कार्य में एकता का होना अविसंवादन योग है। भगवती टीकाकर ने मन वचन और काया की सरलता और अविसंवादनता में अन्तर बताते हुए लिखा है कि मन वचन काया की सरलता वर्तमान कालीन है और अविसंवादन योग वर्तमान और अतीत काल की अपेक्षा है। इनके सिवाय शुभ नाम कार्मण शरीर प्रयोग बंध नामकर्म के उदय से भी जीव शुभ नामकर्म बांधता है। शुभ नामकर्म में तीर्थङ्कर नाम भी है। तीर्थङ्कर नाम कर्म बांधने के २० बोल निम्न लिखितानुसार हैं (१-७) अरिहन्त, सिद्ध, प्रवचन, गुरु, स्थविर, बहुश्रुत और तपस्वी, इन में भक्ति भाव रखना, इनके गुणों का कोर्तन करना तथा इनकी सेवा करना (E) निरन्तर ज्ञान में उपयोग रखना (8) निरतिचार सम्यक्त्व धारण करना (१०) अतिचार (दोप) न लगाते हुए ज्ञानादि विनय का सेवन करना (११) निदोष आवश्यक क्रिया करना (१२) मूलगुण एवं उत्तरगुणों में अतिचार न लगाना (१३) सदा संवेग भाव और शुभ ध्यान में लगे रहना (१४) तप करना (१५) सुपात्रदान देना (१६) दश प्रकार की वैयावृत्त्य करना (१७) गुरु आदि को समाधि हो वैसा कार्य करना (१८)नया नया ज्ञान सीखना (१६)श्रुत की भक्ति अर्थात् बहुमान करना (२०) प्रवचन की प्रभावना करना। ( हरिभद्रीयावश्यक नियुक्ति गाथा १७९-१८१ ) ( ज्ञाता सूत्र अध्ययन ८ वा ) काया की वक्रता, भाषा की वक्रता और विसंवादन योग, ये अशुभनामकर्म बांधने के हेतु हैं। अशुभ नाम कार्मण शरीर प्रयोग नामकर्म के उदय से भी जीव के अशुभ नामकर्म का बंध होता है। शुभ नामकर्म का चौदह प्रकार का अनुभाव है-इष्ट शब्द, इष्ट रूप, इष्ट गंध, इष्ट रस, इष्ट स्पशे, इष्ट गति, इष्ट स्थिति, इष्ट लावण्य
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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