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________________ भी जैन सिद्धान्त बोल संग्रह सुभग नामकर्म- जिस कर्म के उदय से जीव किसी प्रकार का उपकार किए बिना या किसी तरह के सम्बन्ध के बिना भी सब का प्रीतिपात्र होता है उसे सुभग नामकर्म कहते हैं । सुस्वर नामकर्म- जिस कर्म के उदय से जीव का स्वर मधुर और प्रीतिकारी हो उसे सुस्वर नामकर्म कहते हैं। श्रादेय नामकर्म-- जिस कर्म के उदय से जीव का वचन सर्वमान्य हो उसे श्रादेय नामकर्म कहते हैं। ___ यशःकीर्ति नामकर्म-जिस कर्म के उदय से संसार में यश और कीर्ति का प्रसार हो वह यशाकीर्ति नामकर्म कहलाता है। किसी एक दिशा में जो ख्याति या प्रशंसा होती है वह कीर्ति है और सब दिशाओं में जो ख्याति या प्रशंसा होती है वह यश है । अथवा दान तप आदि से जो नाम होता है वह कीर्ति है और पराक्रम से जो नाम फैलता है वह यश है। त्रसदशक प्रकृतियों का स्वरूप ऊपर बताया गया है। स्थावरदशक प्रकृतियों का स्वरूप इनसे विपरीत है। वह इस प्रकार है स्थावर नामकर्म- जिस कर्म के उदय से जीव स्थिर रहें, सर्दी गर्मी आदि से बचने का उपाय न कर सकें, वह स्थावर नामकर्म है। पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय, वायुकाय और वनस्पतिकाय, ये स्थावर जीव हैं । तेउकाय और वायकाय के जीवों में स्वाभाविक गति तो है किन्तु द्वीन्द्रिय आदि त्रस जीवों की तरह सर्दी गर्मी से बचने की विशिष्ट गति उनमें नहीं है। सूक्ष्म नामकर्म-जिस कर्म के उदय से जीव को मूक्ष्म अर्थात् चन से अग्राह्य शरीर की प्राप्ति हो वह मूक्ष्म नामकर्म है। सूक्ष्म शरीर न किसी से रोका जाता है और न किसी को रोकता ही है। इसके उदय से समुदाय अवस्था में रहे हुए भी सूक्ष्म प्राणी दिखाई नहीं देते। इस नामकर्म वाले जीव पाँच स्थावर
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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