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________________ श्री सेठिया जैनप्रन्थमाला विहायोगति नामकर्म-- जिस कर्म के उदय से जीव की गति (गमन क्रिया) हाथी या बैल के समान शुभ अथवा ऊँट या गधे के समान अशुभ होती है उसे विहायोगति नामकर्म कहते हैं। विहायोगति नामकर्म के दो भेद हैं- शुभ विहायोगति और अशुभ विहायोगति । ये पिंड प्रकृतियों के ६५ उत्तर भेद हुए। आठ प्रत्येक प्रकृतियों का स्वरूप इस प्रकार हैपराघात नामकर्म- जिस के उदय से जीव बलवानों के लिये भी दुर्धर्ष (अजेय) हो उसे पराघात नामकर्म कहते हैं। ___ उच्छ्वास नामकमें-जिस कर्म के उदय से जीव श्वासोच्छ्वास लब्धि से युक्त होता है उसे उच्छ्वास नामकर्म कहते हैं। बाहर की हवा को नासिका द्वारा अंदर खींचना श्वास कहलाता है और शरीर के अन्दर की हवा को नासिका द्वारा बाहर निकालना उच्छ्वास कहलाता है । इन दोनों क्रियाओं को करने की शक्ति जीव उच्छास नामकर्म से पाता है। __आतप नामकर्म- जिस कर्म के उदय से जीव का शरीर स्वयं उष्ण न होकर भी उष्ण प्रकाश करता है, उसे आतप नामकर्म कहते हैं । सूर्य मण्डल के बादर एकेन्द्रिय पृथ्वीकाय के जीवों का शरीर ठंडा है परन्तु आतप नामकर्म के उदय से वे प्रकाश करते हैं। सूर्य मण्डल के बादर एकेन्द्रिय पृथ्वीकाय के जीवों के सिवाय अन्य जीवों के आतप नामकर्म का उदय नहीं होता । अनिकाय के जीवों का शरीर भी उष्ण प्रकाश करता है, पर उनमें आतप नामकर्म का उदय नहीं समझना चाहिए । उष्णस्पर्श नामकर्म के उदय से उनका शरीर उष्ण होता है और लोहितवर्ण नामकर्म के उदय से प्रकाश करता है। ___ उद्योत नामकर्म-जिस कर्म के उदय से जीव का शरीर अनुष्ण अर्थात् शीत प्रकाश फैलाता है उसे उद्योत नामकर्म
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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