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________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला ( १ ) पृथ्वीकाय - जिन जीवों का शरीर पृथ्वी रूप है वे पृथ्वीकाय कहलाते हैं । ६४ (२) अष्काय-- जिन जीवों का शरीर जल रूप है वे अकाय कहलाते हैं। (३) तेजस्काय - जिन जीवों का शरीर अग्नि रूप है वे तेजस्काय कहलाते हैं । (४) वायुकाय - जिन जीवों का शरीर वायु रूप है वे वायुकाय कहलाते हैं । ( ५ ) वनस्पतिकाय - वनस्पति रूप शरीर को धारण करने वाले जीव वनस्पतिकाय कहलाते हैं । ये पाँचों ही स्थावर काय कहलाते हैं। इनके केवल स्पर्शन इन्द्रिय होती है । ये शरीर जीवों की स्थावर नाम कर्म के उदय प्राप्त होते हैं I ( ६ ) सकाय — त्रस नाम कर्म के उदय से चलने फिरने योग्य शरीर को धारण करने वाले द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, और पञ्चेन्द्रिय जीव सकाय कहलाते हैं । (ठाणांग ६ सूत्र ४८०) (दशनैकालिक चौथा अध्ययन) (कर्म ग्रन्थ चौथा . ) ४६३ - जीवनिकाय की कुलकोटियाँ छः - कुल अर्थात् जातिविशेष को कुलकोटि कहते हैं । पृथ्वीकाय आदि छः कार्यों की कुलकोटियाँ इस प्रकार हैं( १ ) पृथ्वीकाय की बारह लाख कुलकोटियाँ हैं । (२) काय की सात लाख । (३) ते काय की तीन लाख ! ( ४ ) वायुकाय की सात लाख । (५) वनस्पतिकाय की अट्ठाईस लाख |
SR No.010509
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size15 MB
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