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________________ ११ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला काल में स्वद्रव्यादि की चौभङ्गी काल का स्वद्रव्य वर्तनादि गुण अनादि अनन्त है। समय सादि सान्त है । अरुलघु रूप स्वकाल अनादि अनन्त है , परन्तु उत्पादादि की अपेक्षा सादि सान्त है । स्वभाव गुण वर्तनादि रूप अनादि अनन्त है , परन्तु अतीत काल अनादि सान्त, वर्तमान काल सादि सान्त और भविष्यत् काल सादि अनन्त है। पुद्गल में स्वद्रव्यादि की चौभङ्गी पुद्गल में स्वद्रव्य पूरण गलन गुण अनादि अनन्त है। स्वक्षेत्र परमाणु सादि सान्त है । स्वकाल अगुरुलघु की अपेक्षा अनादि अनन्त और उसके उत्पादादि की अपेक्षा सादि सान्त है। स्वभाव गुण मिलन बिरवरनादि अनादि अनन्त है। वर्णादि चार पर्याय सादि सान्त हैं। द्रव्यों में परस्पर सम्बन्ध छहों द्रव्यों में परस्पर सम्बन्ध को लेकर चार भङ्ग होते हैं। आकाशद्रव्य के दो भेद हैं। लोकाकाश और अलोकाकाश। अलोकाकाश में किसी द्रव्य का सम्बन्ध नहीं है । क्योंकि उसमें कोई द्रव्य ही नहीं है, जिसके साथ उसका सम्बन्ध हो सके । लोकाकाश में सब द्रव्य हैं । इससे उसके साथ अन्य द्रव्य का सम्बन्ध है। धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय का लोकाकाश से अनादि अनन्त सम्बन्ध है । क्योंकि लोकाकाश के प्रत्येक प्रदेश के साथ उन दोनों द्रव्यों के प्रदेश ऐसे मिले हुए हैं जो कभी अलग नहीं होते । यही .. कारण है कि उनका परस्पर सम्बन्ध अनादि अनन्त है। ऐसे ही जीव द्रव्य का भी लोकाकाश के साथ अनादि
SR No.010509
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size15 MB
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