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________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला उ.- मैं देवदत्त के घर में रहता हूँ। (विशुद्धतर नैगम) प्र०- देवदत्त के घर में अनेक कोठे हैं क्या आप उन सब कोठों में रहते हैं ? उ०- मैं मध्य के कोठे में रहता हूँ। ___ इस प्रकार पूर्व पूर्व की अपेक्षा से विशुद्धतर नैगम नय के मत से वसते हुए कोरहता हुआ माना जाता है। यदि वह अन्यत्र भी चला जावे तो भी वह जहाँ का निवासी होगा वहाँ का ही माना जायगा। इसी प्रकार व्यवहार का मत है, किन्तु विशेषता इतनी है कि जब तक वह अन्यत्र अपना स्थान निश्चय न कर ले तब तक उसके लिये यह कहा जाता है कि अमुक पुरुष इस समय पाटलीपुत्र में नहीं है और जहाँ पर जाता है वहाँ पर ऐसा कहते हैं, पाटलीपुत्र का वसने वाला अमुक पुरुष यहाँ आया हुआ है। लेकिन वसते हुए को वसता हुआ मानना यह दोनों नयों का मन्तव्य है। ___ संग्रह नय जब कोई अपनी शय्या में शयन करे तभी उसे वसता हुआ मानता है, क्योंकि चलना आदि क्रिया से रहित होकर शयन करने के समय को ही संग्रह नय वसता हुआ मानता है। संग्रह नय सामान्यग्राही है। इसलिये उसके मत से सभी शव्याएं एक समान हैं। ___ ऋजुमूत्र नय के मत से शय्या में जितने आकाश प्रदेश अवगाहन किये हुए हैं , वह उन्हीं पर वसता हुआ माना जाता है, क्योंकि यह नय वर्तमान काल को स्वीकार करता है, अन्य को नहीं। इसलिये जितने आकाशप्रदेशों में किसी ने अवगाहन किया है उन्हीं पर वह वसता है, ऐसा ऋजुसूत्र
SR No.010509
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size15 MB
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