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________________ 428 श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला आप कहाँ जाते हैं ? उत्तर में उसने कहा कि प्रस्थक के लिये जाता हूँ। इसी प्रकार प्रस्थक के लिये काष्ठ काटते हुए, काष्ठ को छीलते हुए, कोरते हुए, लिखते हुए भी वह पूछने पर यही उत्तर देता है कि प्रस्थक काटता हूँ, यावत् प्रस्थक को लिखता हूँ / इस प्रकार पूर्णता प्राप्त प्रस्थक को भी प्रस्थक कहता है। यहाँ काष्ठ के लिये जंगल मे जाते हुए को पूछने पर 'प्रस्थक के लिये जाता हूँ' यह उत्तर अतिशुद्ध नैगम नय की अपेक्षा से है, क्योंकि वह प्रस्थक के काष्ठ के लिये जा रहा है, न कि प्रस्थक के लिये। यहाँ कारण से कार्य का उपचार किया गया है। शेष उत्तर क्रमशः विशुद्ध, विशुद्धतर नैगम नय की अपेक्षा से हैं, क्योंकि उनमें भी कारण से कार्य का उपचार किया गया है। आगे आगे उत्तर में प्रस्थक पर्याय का व्यवधान कम होता जा रहा है और इसलिये उपचार का उत्तरोत्तर तारतम्य है। जैसे कि दूध आयु है, दही आयु है, घी आयु है। इन वाक्यों में उपचार की उत्तरोत्तर कमी है। विशुद्ध नैगम नय की अपेक्षा से तो प्रस्थक पर्याय को प्राप्त द्रव्य प्रस्थक कहा जाता है। लोक में उन अवस्थाओं में प्रस्थक का व्यवहार होता देखा जाता है। इसलिए लोक व्यवहार प्रधान व्यवहार नय का उक्त मन्तव्य भी नैगम नय जैसा ही है। संग्रह नय मेय धान्य से भरे हुए अपनी अर्थक्रिया करते हुए प्रस्थक को प्रस्थक रूप से मानता है। कारण में कार्य का उपचार इस नय को इष्ट नहीं है। इसके अतिरिक्त इस नय के सामान्यग्राही होने से इसके अनुरूप सभी एक ही प्रस्थक हैं। ___ ऋजुमूत्र नय प्रस्थक और मेय धान्यादि दोनों को प्रस्थक रूप से मानता है। यह नय पहिले के नयों से अधिक विशुद्ध होने से वर्तमानकालीन मान और मेय को ही प्रस्थक रूप से स्वीकार करता है। भूत् एवं भविष्यत् काल इस नय की अपेक्षा
SR No.010509
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size15 MB
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