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________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला से उसमें उपरोक्त बीसों बोल पाये जाते हैं। __यह नय प्रायः उपचार में ही प्रवृत्त हुआ करता है और इस के ज्ञेय विषय अनेक हैं। इसलिए इसको विस्तृतार्य भी कहा है। जैसे यह कहना कि घड़ा चूता है,रास्ता चलता है इत्यादि। वस्तुतःघड़े में भरा हुआ पानी चूता है और रास्ते पर मनुष्यादि चलते हैं। फिर भी लौकिक जन घड़े का चूना और रास्ते का चलना ही कहा करते हैं / इसी प्रकार प्रायः उपचरित विषय ही व्यवहार नय का विषय समझना चाहिए। व्यवहार न य के दो भेद हैं-सामान्यभेदक और विशेषभेदक। सामान्य संग्रह में भेद करने वाले नय को सामान्यभेदक व्यवहार नय कहते हैं। जैसे द्रव्य के दो भेद हैं, जीव और अजीव। विशेष संग्रह में भेद करने वाला विशेषभेदक व्यवहार नय है / जैसे जीव के दो भेद- संसारी और मुक्त। (4) ऋजुसूत्र नय-वर्तमान क्षण में होने वाली पर्याय को प्रधान रूप से ग्रहण करने वाले नय को ऋजुसूत्र नय कहते हैं। जैसे मुखपर्याय इस समय है / यह वर्तमानक्षणस्थायी सुरवपर्याय को प्रधान रूप से विषय करता है, परन्तु अधिकरणभूत आत्मा को गौण रूप से मानता है। (रत्नाकरावतारिका अ० 7 सूत्र 28) वर्तमानकालभावी पर्याय को ग्रहण करने वाला नय ऋजुसूत्र नय है। ऋजुमूत्र नय भूत और भविष्यत् काल की पर्याय को नहीं मानता। (अनुयोगद्वार लक्षण द्वार) इसके दो भेद हैं - मूक्ष्म ऋजुसूत्र और स्थूल ऋजुमूत्र / जो एक समय मात्र की वर्तमान पर्याय का ग्रहण करे, उसे सूक्ष्म ऋजुमूत्र कहते हैं। जैसे शब्द क्षणिक है / जो अनेक समयों की वर्तमान पर्याय को ग्रहण करता है, उसे स्थूल ऋजुसूत्र कहते हैं। जैसे सौ वर्ष झाझरी मनुष्य पर्याय /
SR No.010509
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size15 MB
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