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________________ भी सेठिया जैन अन्यमाना 414 नैगम नय के दूसरी अपेक्षा से तीन भेद भी माने गए हैं। जैसे- भूत नैगम, भावी नैगम और वर्तमान नैगम।। अतीत काल में वर्तमान का संकल्प करनाभूत नैगम नय है। जैसे दीवाली के दिन कहना-आज महावीर स्वामी मोक्ष गये थे। आज का अर्थ है वर्तमान दिवस,लेकिन उसका संकल्प हजारों वर्ष पहले के दिन में किया गया है। भविष्य में भूत का संकल्प करना भावी नैगम नय है। जैसे अरिहन्त (जीवनमुक्त) सिद्ध ( मुक्त) हो हैं। कोई कार्य शुरू कर दिया गया हो, परन्तु वह पूर्ण न हुआ हो, फिर भी पूर्ण हुआ कहना वर्तमान नैगम नय है। जैसे रसोई के प्रारम्भ में ही कहना कि आज तो भात बनाया है। (2) संग्रह नय-विशेष से रहित सत्त्व, द्रव्यत्वादि सामान्यमात्र को ग्रहण करने वाले नय को संग्रह नय कहते हैं। (रत्नाकरावतारिका ) पिण्डित अर्थात् एक जाति रूप सामान्य अर्थ को विषय करने वाले नय को संग्रह नय कहते हैं। (अनुयोगद्वार लक्षणद्वार) संग्रह नय एक शब्द के द्वारा अनेक पदार्थों को ग्रहण करता है अथवा एक अंश या अवयव का नाम लेने से सर्वगुणपर्यायसहित वस्तु को ग्रहण करने वाला संग्रह नय है। जैसे कोई बड़ा आदमी अपने घर के द्वार पर बैठा हुआ नौकर से कहता है कि 'दातुन लाओ' वह 'दातुन' शब्द सुनकर मञ्जन, कूची, जीभी, पानी का लोटा, टुवाल आदि सब चीजें लेकर उपस्थित होता है। केवल 'दातुन' इतना ही कहने से सम्पूर्ण सामग्री का संग्रह हो गया। संग्रह नय के दो भेद हैं, परसंग्रह (सामान्य संग्रह) और अपरसंग्रह (विशेष संग्रह)। सत्तामात्र अर्थात् द्रव्यों को ग्रहण करने वाला नय परसंग्रह
SR No.010509
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size15 MB
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