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________________ 410 भी सेठिया जैन प्रन्थमाला anwww चाहिए / योग्य शिष्य का कर्तव्य है कि वह गुरु के बताए मार्ग पर चले / हरएक बात में गुरु की नकल करना ठीक नहीं है। जो रोगी वैद्य के उपदेशानुसार चलता है, वह रोग से मुक्त हो सकता है। वैद्य की तरह वेश या चाल चलन रखने से वह रोगमुक्त नहीं हो सकता। किसी तपणक के वैद्य होने पर उसकी तरह नग्न रहकर सब तरह के पदार्थ खाने से रोगी सत्रिपात ज्वर से मर ही जायगा / इसलिए वैद्य के उपदेशानुसार चलना ही रोगी के लिए श्रेयस्कर है / इसी तरह जिनराज रूपी वैद्य के उपदेशों पर चल कर ही जीव कर्मरोग से मुक्त हो सकता है ।उतनी सामर्थ्य के बिना उनका वेश और चारित्र रखने से पागल ही समझा जायगा। ___ यदि तीर्थङ्कर भगवान् के साथ पूर्ण रूप से समानता ही रखनी है तो उनकी तरह स्वयंसम्बुद्ध (जिनको दूसरे के उपदेश के बिना ही ज्ञान प्राप्त हो गया हो) भी होना चाहिए / छअस्थावस्था में किसी को उपदेश नहीं देना चाहिए / किसी शिष्य को दीक्षा न देनी चाहिए। तुम्हारे शिष्य तथा प्रशिष्यों को भी इसी बात पर चलना चाहिए / इस तरह तीर्थ ही नहीं चलेगा। आज कल केवलज्ञान न होने से दीक्षादि बन्द हो जायँगे / जिनकल्प के लिए भी प्रत्येक व्यक्ति में विशेष योग्यता होनी चाहिये / शास्त्र में कहा है- जो व्यक्ति उत्तम धैर्य और संहनन वाला हो, कम से कम किञ्चित् ऊन नौ पूर्वो का ज्ञाता, अनुपम शक्ति और अतिशय से सम्पन्न हो, ज्ञान और पराक्रम सेसमर्थ हो, वही जिनकल्पी हो सकता है / साधारण पुरुष नहीं। शास्त्र में नीचे लिखी बातों का जम्बूस्वामी के बाद विच्छेद बताया गया है। मनःपयेयज्ञान, परमावधि, पुलाक लब्धि, आहारक शरीर, तपकश्रेणी, उपशमश्रेणी, जिनकल्प, परिहार
SR No.010509
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size15 MB
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