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________________ 408 श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला लिये तथा बीमार के लिये भी वस्त्र की आवश्यकता है। मुखवत्रिका, रजोहरणादि उपकरण भी यथावसर संयम के उपकारी हैं। . नगर या गाँव में पड़ी हुई बीमारी की धूल वगैरह से बचने के लिये भी मुखवत्रिका की आवश्यकता होती है। रात्रि में किसी वस्तु को लेने या रखने के लिये तथा शास्त्र या पाट वगैरह को इधर उधर हटाने से पहले पूंजने के लिये रजोहरण की आवश्यकता है। यह साधु का चिह्न भी है। गुप्त अगों को ढकने के लिये तथा जुगुप्सानिवृत्ति के लिये चोलपट्टा भी रखना चाहिए। जिन के अन्दर द्वीन्द्रियादि जीव पैदा हो गये हों, ऐसे सत्तु, गोरस, द्राक्षादि के पानी में पड़े हुए जीवों की रक्षा के लिये पात्रों की आवश्यकता है। बिना पात्रों के हाथ में लिये हुए गोरसादि इधर उधर गिर जायेंगे, इससे उनमें पड़े हुए जीवों की हिंसा होगी / पात्रों द्वारा उन्हें दोषरहित स्थान पर परठने से हिंसा बच जाती है। बिना पात्रों के हाथ में घी, दूध वगैरह पदार्थ लेने से नीचे गिर जायँगे, उससे नीचे चलते हुए कीड़ी कुन्थु आदि प्राणियों की हिंसा होगी। हाथ धोने वगैरह में जो पश्चात्कर्मदोष लगते हैं,उनसे बचने के लिये भी इनकी आवश्यकता हैं। अशक्त, बालक, दुर्बल और वृद्ध वगैरह के उपकार के लिए भी पात्र आवश्यक हैं / क्योंकि पात्र रहने पर उनमें गृहस्थों से भोजन लाकर अशक्त को दिया जा सकता है। पात्रों के बिना यह होना कठिन है।पात्र रहने परआहार लाकर दूसरे साधुओं को देने से दान धर्म की सिद्धि होती है तथा वैयात्त्य तप होता है। पात्र रहने से लब्धि वाले और बिना लब्धि केशक्त और अशक्त, वहाँ के निवासी और पाहुने सब समान रूप से स्वस्थ होकर
SR No.010509
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size15 MB
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