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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह अक्रिय हैं । निश्चय नय से सभी द्रव्य नित्य और अनित्य हैं । व्यवहार नय से जीव और पुद्गल अनित्य और बाकी के चार नित्य हैं । दूसरे सभी द्रव्य जीव के काम में आते हैं किन्तु जीव किसी दूसरे द्रव्य के काम नहीं आता । इसलिए पाँच द्रव्य कारण हैं और जीव अकारण । निश्चय नय से सभी द्रव्य कर्ता हैं। व्यवहार नय से जीव द्रव्य ही कर्ता है बाकी पाँच अकर्ता हैं । आकाश सर्व (लोकालोक) व्यापी है बाकी पाँच द्रव्य सिर्फ लोक व्यापी हैं। छहों द्रव्य एक क्षेत्र में अवस्थित होने पर भी परस्पर मिश्रित नहीं होते। . आठ पक्ष प्रत्येक द्रव्य में आठ पक्ष बतलाये जाते हैं । १ नित्य २ अनित्य ३ एक ४ अनेक ५ सत् ६ असत् ७ वक्तव्य और ८ अवक्तव्य । नित्य अनित्य-धर्मास्तिकाय के चारों गुण और एक लोक परिमाण स्कन्ध रूप पर्याय नित्य हैं । देश,प्रदेश और अगुरुलघु ये तीन पर्याय अनित्य हैं । इसी तरह अधर्मास्तिकाय के चारों गुण और एक पर्याय नित्य हैं । आकाशास्तिकाय के भी चारों गुण और लोकालोक परिमाण स्कन्ध रूप पर्याय नित्य हैं। काल द्रव्य के चारों गुण नित्य हैं। चारों पर्याय अनित्य हैं । जीव द्रव्य के चारों गुण और तीन पर्याय नित्य हैं । अगुरुलघु पर्याय अनित्य है। एक अनेव-धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय का लोक
SR No.010509
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size15 MB
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