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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह जिस तरह एक तन्तु वस्त्र का उपकारक होता है। किसी भी एक तन्तु के बिना कपड़ा अधूरा रह जाता है, किन्तु केवल प्रथम या अन्तिम कोई भी तन्तु वस्त्र नहीं कहा जा सकता उसी तरह एक प्रदेश को जीव नहीं कहा जा सकता चाहे वह प्रथम हो या अन्तिम / ___ एवंभूत नय के मत से देश और प्रदेश वस्तु से भिन्न नहीं हैं। स्वतन्त्र रूप से वे अवस्तु रूप हैं, अयथार्थ हैं, उनकी कोई सत्ता नहीं है ।देशप्रदेश की कल्पनासे रहित सम्पूर्ण वस्तु ही एवंभूत का विषय है। एवंभूत नय को प्रमाण मानने से सम्पूर्ण जीव को जीव मानना होगा किसी एक प्रदेश को नहीं। शंका- गांव जल गया, कपड़ा जल गया, इत्यादि स्थानों में एक देश में भ समस्तवस्तु का उपचार किया जाता है / इसो प्रकार अन्तिम प्रदेश में भी समस्त जीव का व्यवहार हो सकता है। __उत्तर- यह कहना ठीक नहीं है। इस प्रकार अन्तिम प्रदेश की तरह प्रथमादि प्रदेशों में भी जीवत्व का व्यवहार मानना पड़ेगा, क्योंकि युक्ति दोनों के लिए एकसी है / दूसरी बात यह है कि जब किसी वस्तु में थोड़ासाअधूरापन रह जाता है तभी उसमें पूर्णता का व्यवहार हो सकता है। जैसे कुछ अधूरे कपडे में कपड़े का व्यवहार। एक तन्तु में कभी कपड़े का व्यवहार नहीं होता। इसी तरह एक प्रदेश में भी जीव का व्यवहार नहीं हो सकता। इस तरह गुरु के बहुत समझाने पर भी जब तिष्यगुप्त न माना तो उन्होंने उसे संघ के बाहर कर दिया। अकेला विहार करता हुआ वह आमलकल्पा नामक नगरी में आकर आम्रशाल वन में ठहर गया / मित्रश्री श्रावक ने तिष्यगुप्त को सच्ची बात समझाने का निश्चय किया / एक दिन तिष्यगुप्त उस श्रावक के घरगोचरी के लिए आए / श्रावक ने अशन, पान, वस्त्र,व्यंजन आदि वस्तुएं तिष्यगुप्त के सामने ला रक्खीं और उन सब का
SR No.010509
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size15 MB
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