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________________ ३३८ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला के उपयोग वाले हैं अर्थात् इन के ज्ञान और दर्शन दोनों होते हैं। __ समुद्घात- नारकी जीवों के चार समुद्घात होते हैं । वेदना समुद्घात, कषाय समुद्घात, मारणान्तिक समुद्घात और वैक्रिय समुद्घात । प्राण, भूत, जीव और सत्व अथवा पृथ्वी, अप तेज, वायु, वनस्पति और त्रस सभी कायों के जीव जो व्यवहार राशि में आ चुके हैं, नरक में अनेक बार उत्पन्न हुए हैं। जीवाभिगमसूत्र में नरक के विषय में जो जो बातें कही गई हैं, उनके लिए संग्रहणी गाथाओं को उपयोगी जानकर यहाँ लिखा जाता है पुढवीं श्रोगाहित्ता, नरगा संठाणमेव बाहल्लं । विखभपरिक्खेवे, वगणो गंधो य फासो य॥१॥ तेसिं महालयाए उवमा देवेण होइ कायव्वा । जीवा यपोग्गला वक्कमंतितह सासया निरया ॥२॥ उववायपरीमाणं अवहारुच्चत्तमेव संघयणं । संठाणवएणगंधा फासा ऊसासमाहारे ॥३॥ लेसा दिट्ठी नाणे जोगुवोगे तहा समुग्घाया। तत्तोखुहापिवासा विउवणा वेयणा य भए॥४॥ उववाओ पुरिसाणं ओवम्मं वेयणाए दुविहाए । उव्वदृण पुढवीउ, उववाओ सव्वजीवाणं ॥५॥ अर्थात् इस प्रकरण में नीचे लिखे विषय बताए गए हैं(१) पृथ्वियों के नाम तथा गोत्र (२) नरकावासों की अवगाहना तथा स्वरूप (३) नरकावासों का संस्थान (४) बाहल्य अर्थात् मोटाई (५) विष्कम्भ (लम्बाई चौड़ाई) तथा परिक्षेप अर्थात् परिधि (६) वर्ण, गन्ध, स्पर्श (७) असंख्यात योजन वाले नरकावासों के विस्तार के लिए उपमा (८) जीव और पुद्गलों की
SR No.010509
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size15 MB
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