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________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला ये छह द्रव्य शाश्वत अर्थात् अनादि अनन्त हैं ; इनमें से पांच अजीव हैं, एक जीव । जीव द्रव्य का लक्षण चेतना है, वह उपादेय है, बाकी के पांचों अजीव द्रव्य हेय (छोड़ने योग्य) हैं। द्रव्यों के गुण धर्मास्तिकाय के चार गुण हैं-१ अरूपिता, २ अचेतनता, ३ अक्रियता, ४ गति-सहायता अर्थात् जीव और पुद्गल को चलने में सहायता देना । अधमास्तिकाय के चार गुण-१ अरूपिता, २ अचेतनता, ३ अक्रियता, ४ स्थिति सहायता अर्थात् जीव और पुद्गलों को स्थिति में सहायता पहुँचाना । आकाशास्तिकाय के चार गुण-१ अरूपिता, २ अचेतना, ३ अक्रियता, ४ अवगाहनादान ( सब द्रव्यों को जगह देना )। काल द्रव्य के चार गुण१ अरूपिता, २ अचेतनता, ३ अक्रियता, ४ वर्तना ( नये को पुराना करना )। पुद्गलास्तिकाय के चार गुण-१ रूपिता, २ अचेतनता, ३ सक्रियता, ४ मिलन बिवरण अर्थात् मिलना और अलग होना या पूरन गलन, पूर्ति करना और गल जाना । जीव के चार गुण१ अनन्त ज्ञान, २ अनन्त दर्शन, ३ अनन्त चारित्र, ४ अनन्त वीर्य। ___ द्रव्यों के पर्याय धर्मास्तिकाय के चार पर्याय हैं-१ स्कन्ध, २ देश, ३ प्रदेश, ४ अगुरुलघु । इसी तरह
SR No.010509
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size15 MB
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