SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 369
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३३६ भी सेठिया जैन ग्रन्थमाला 1 योजन आयाम तथा विष्कम्भ है और इतनी ही परिधि है । वर्ण - नारकी जीव भयङ्कर रूप वाले होते हैं। अत्यन्त काले, काली प्रभावाले तथा भय के कारण उत्कट रोमाञ्च वाले होते हैं। प्रत्येक नारकी जीव का रूप एक दूसरे को भय उत्पन्न करता है गन्ध-साँप, गाय, अश्व, भैंस आदि के सड़े हुये मृत शरीर से भी कई गुनी दुर्गन्धि नारकों के शरीर से निकलती है । उनमें कोई भी वस्तु रमणीय नहीं होती। कोई प्रिय नहीं होती । स्पर्श-र - खड्ग की धार, क्षुरधार, कदम्बचीरिका (एक तरह का घास जो दूभ से भी बहुत तीखा होता है), शक्ति, मृइयों का समूह, बिच्छू का डंक, कपिकच्छू (खुजली पैदा करने वाली बेल), अंगार, ज्वाला, छाणों की आग आदि से भी अधिक कष्ट देने वाला नरकों का स्पर्श होता है । नरकावासों का विस्तार- महा शक्तिशाली ऋद्धिसम्पन्न महेशान देव तीन चुटकियों में एक लाख योजन लम्बे और एक लाख योजन चौड़े जम्बूद्वीप की इक्कीस प्रदक्षिणाएं कर सकता है । इतना शीघ्र चलने वाला देव भी अगर पूरे वेग से नरकावासों को पार करने लगे तो किसी में एक दिन, किसी में दो दिन, तथा किसी में छह महीने लगेंगे । कुछ नरकावास ऐसे हैं जो छह महीने में भी पार नहीं किए जा सकते। रत्नप्रभा आदि सभी पृथ्वियों में इतने विस्तार वाले नरकावास हैं। सातवीं महातमः प्रभा में प्रतिष्ठान नामक नरकावास का अन्त तो उस देवता द्वारा छः महीने में प्राप्त किया जा सकता है, बाकी आवासों का नहीं । किंमया- ये सभी नरकावास वज्रमय हैं अर्थात् वज्र की तरह कठोर हैं। इन में पुद्गलों के परमाणुओं का आना जाना बना रहता है किन्तु मूल रूप में कोई फरक नहीं पड़ता । संख्या- अगर प्रत्येक समय एक नारकी जीव रत्नप्रभा
SR No.010509
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy