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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह पर कारण अवश्य रहेगा। इसलिए कार्य के होने से कारण के विरोधी का अभाव सिद्ध किया जा सकता है । जैसे इस मनुष्य के क्रोध आदि की शान्ति नहीं हुई है, क्योंकि मुँह बिगड़ा हुआ मालूम पड़ता है। क्रोध के बिना मुँह नहीं बिगड़ता। इसलिए मुँह का बिगड़ना क्रोध की सत्ता को सिद्ध करता है और क्रोध की सत्ता अपने विरोधी कोधाभाव के अभाव को अर्थात् क्रोध को सिद्ध करती है। (४) विरुद्धकारणोपलब्धि- पुष्ट कारण के होने पर कार्य अवश्य होता है। जहाँ विरोधी वस्तु के कारण की सत्ता से कार्य के विरोधी का निषेध किया जाय उसे विरुद्धकारणोपलब्धि कहते हैं। जैसे—यह महर्षि झूठ नहीं बोलता, क्योंकि इसका ज्ञान राग द्वेष आदि कलङ्क से रहित है । यहाँ झूठ बोलने का विरोधी है सत्य बोलना और उसका कारण है राग द्वेष . से रहित ज्ञान वाला होना । रागादिरहित ज्ञान रूप कारण ने अपने कार्य सत्यवादित्व की सत्ता सिद्ध की और उसकी सत्ता से झूठ बोलने का प्रतिषेध हो गया। (५) विरुद्धपूर्वचरोपलब्धि- जहाँ प्रतिषेध्य से विरुद्ध पूर्वचर को उपलब्धि हो । जैसे- कल रविवार नहीं होगा, क्योंकि आज गुरुवार है। यहाँ प्रतिषेध्य रविवार है, उसका अनुकूल पूर्वचर शनिवार है क्योंकि उसके बाद ही रविवार आता है। गुरुवार रविवार का विरोधी पूर्वचर है क्योंकि गुरुवार के दूसरे दिन रविवार नहीं आता इसलिए गुरुवार के रहने से दूसरे दिन रविवार का अभाव सिद्ध किया जा सकता है। इसी तरह मुहूर्त के बाद पुष्य नक्षत्र का उदय नहीं होगा, क्योंकि अभी रोहिणी का उदय है। यहाँ पुष्य नक्षत्र के उदय का निषेध करना है। उसका विरोधी है मृगशीर्ष का उदय । क्योंकि पुष्य का उदय
SR No.010509
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size15 MB
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