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________________ २८३ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह बिना श्रेणी के गति नहीं होती । श्रेणियाँ सात हैं-(१) ऋज्वायता- जिस श्रेणी के द्वारा जीव उर्ध्व लोक (ऊँचे लोक आदि से धोलोक आदि में सीधे चले जाते हैं, उसे ऋज्वायता श्रेणी कहते हैं। इस श्रेणी के अनुसार जाने वाला एक ही समय में गन्तव्य स्थान पर पहुँच जाता है । (२) एकतो वक्रा - जिस श्रेणी द्वारा जीव सीधा जाकर वक्रगति प्राप्त करे अर्थात् दूसरी श्रेणी में प्रवेश करे उसे एकतो वक्रा कहते हैं । इस के द्वारा जाने वाले जीव को दो समय लगते हैं। (३) उभयतो वक्रा - जिस श्रेणी के द्वारा जाता हुआ जीव दो बार वक्रगति करे अर्थात् दो बार दूसरी श्रेणी (पंक्ति) को प्राप्त करे । इस श्रेणी से जाने वाले जीव को तीन समय लगते हैं। यह श्रेणी आग्नेयी ( पूर्व दक्षिण ) दिशा से अधोलोक की वायवी (उत्तर पश्चिम) दिशा में उत्पन्न होने वाले जीव के होती है । पहिले समय में वह आग्नेयी (पूर्वदक्षिण कोण) दिशा से तिरछा पश्चिम की ओर दक्षिण दिशा के कोण अर्थात् नैऋत दिशा की तरफ जाता है । दूसरे समय में वहाँ से तिरछा होकर उत्तर पश्चिम कोण अर्थात् वायवी दिशा की तरफ जाता है । तीसरे समय में नीचे वायवी दिशा की ओर जाता है । यह तीन समय की गति नाड़ी अथवा उससे बाहर के भाग में होती है। ( ४ ) एकत: खा - जिस श्रेणी द्वारा जीव या पुद्गल त्रसनाड़ी के बाएं पसवाड़े से साड़ी में प्रवेश करें और फिर सनाड़ी द्वारा जाकर उसके बाई तरफ वाले हिस्से में पैदा होते हैं उसे एकत: खा श्रेणी कहते हैं । इस श्रेणी के एक तरफ सनाड़ी के बाहर का आकाश आया हुआ है इसलिए इसका नाम एकत:खा है । इस श्रेणी में दो, तीन या चार समय की वक्रगति होने पर भी क्षेत्र की अपेक्षा से इस को अलग कहा है।
SR No.010509
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size15 MB
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