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________________ २८० श्रीसेठिया जैन ग्रन्थमाला एक बार मल्लिकुँबरी के कुण्डलों का जोड़ खुल गया। उसे जोड़ने के लिए कुम्भक राजा ने सुनारों को आज्ञा दी किन्तु वे उसे पहले की तरह न कर सके। राजा ने सुनारों को अपनी नगरी से निकाल दिया । वे बनारस के राजा शंखराज के पास चले गये । राजा के पूछने पर सुनारों ने सारी बात कह दी और मल्लिकुँवरी के सौन्दर्य की प्रशंसा की। मोहित होकर शंखराज ने भी मल्लिकुँवरी को वरने के लिये दूत भेज दिया । ___ एक बार मल्लिकुँवरी के छोटे भाई मल्लदिन्न ने सभाभवन को चित्रित करवाना शुरू किया । लब्धि विशेष से सम्पन्न होने के कारण एक चित्रकार ने मल्लिकुँवरी के पैर के अँगूठे को देख कर सारी तस्वीर को हूबहू चित्रित कर दिया। मल्लदिन्न कुँवर अपने अन्तःपुर के साथ चित्र सभा में आया । देखते देखते उसकी नजर मल्लि के चित्र पर पड़ी। उसे साक्षात् मल्लिकुँवरी समझ कर बड़ी बहिन के सामने इस प्रकार अविनय से आने के कारण वह लज्जित होने लगा। उसकी धाय ने बताया कि यह चित्र है साक्षात् मल्लिकुँवरी नहीं । अयोग्य स्थान में बड़ी बहिन का चित्र बनाने के कारण चित्रकार पर मल्लदिन्न को बड़ा क्रोध आया और उसे मारने को आज्ञा दी। सब चित्रकारों ने इकडे हो कर कुमार से प्रार्थना की कि ऐसे गुणी चित्रकार को मृत्युदंड न देना चाहिए। कुमार ने उनकी प्रार्थना पर ध्यान देकर चित्रकार का अँगूठा और अँगूठे के पास की अंगुली काटकर देशनिकाला दे दिया। वह हस्तिनापुर में अदीनशत्रु राजा के पास पहुँचा। राजा ने चित्रकार के मुँह से मल्लिकुँवरी की तारीफ सुनकर दूत को भेज दिया। एक बार चोक्षा नाम की परित्राजिका ने मल्लिकुँवरी के भवन में प्रवेश किया। मल्लिस्वामिनी ने दानधर्म और शौचधर्म का
SR No.010509
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size15 MB
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