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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह २७५ के अनुसार जिस स्वर से गाया जाय उसे लयसम कहते हैं। (५) ग्रहसम- बांसुरी या सितार वगैरह का स्वर सुनकर उसी के अनुसार जब गाया जाय तो उसे ग्रहसम कहते हैं। (६) निःश्वसितोच्छ्वसितसम- जहां सांस लेने और बाहर निकलने का क्रम बिल्कुल ठीक हो उसे निःश्वसितोच्छसितसम कहते हैं। (७) संचारसम- बांसुरी या सितार वगैरह के साथ साथ जो गाया जाता है उसे संचारसम कहते हैं। संगीत का प्रत्येक स्वर अक्षरादि सातों से मिलकर सात प्रकार का हो जाता है। गीत के लिए बनाये जाने वाले पद्य में आठ गुण होने चाहिए। (१) निर्दोष (बत्तीस दोष रहित), (२) सारवत् , (३) हेतुयुक्त, (४) अलंकृत, (५) उपनीत, (६) सोपचार, (७) मित और (८) मधुर । इनकी व्याख्या आठवें बोल में दी जायगी। वृत्त अर्थात् छन्द तीन तरह का होता है- सम, अर्द्धसम और विषम । (१)जिस छन्द के चारोंपाद के अक्षरों की संख्या समान हो उसे सम कहते हैं । (२) जिसमें पहला और तीसरा, दूसरा और चौथा पाद समान संख्या वाले हों उसे अर्द्धसम कहते हैं । (३) जिसमें किसी भी पाद की संख्या एक दूसरे से न मिलती हो उसे विषम कहते हैं। ___ संगीत की दो भाषाएं हैं-संस्कृत और प्राकृत। संगीत कला में स्त्री का स्वर प्रशस्त माना गया है । गौरवर्णा स्त्री मीठा गाती है। काली कठोर और रूखा,श्यामा चतुरता पूर्वक गाती है। काणी ठहर ठहर कर, अन्धी जल्दी जल्दी, पीले रंग की स्त्री खराब स्वर में गाती है। सात स्वर, तीन ग्राम और इक्कीस मूर्च्छनाएं हैं। प्रत्येक स्वर सात तानों के द्वारा गाया जाता है इसलिए सातों स्वरों के ४६ भेद हो जाते हैं। ( अनुयोगद्वार गाथा ४६-५६ ) (ठाणांग सूत्र ५५३)
SR No.010509
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size15 MB
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