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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह २६१ (४) छद्मस्थ शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गन्ध का रागपूर्वक सेवन कर सकता है। (५) वस्त्रादि के द्वारा अपने पूजा सत्कार का वह अनुमोदन करता है अर्थात् पूजा सत्कार होने पर प्रसन्न होता है। (६) छमस्थ प्राधाकर्म आदि को सावध जानते हुए और ____कहते हुए भी उनका सेवन करने वाला होता है। (७) साधारणतया वह कहता कुछ है और करता कुछ है। इन सात बोलों से छद्मस्थ पहिचाना जा सकता है। (ठाणांग सूत्र ५५०) ५२४- केवली जानने के सात स्थान ऊपर कहे हुए छद्मस्थ पहिचानने के बोलों से विपरीत सात बोलों से केवली पहचाने जा सकते हैं । केवली हिंसादि से सर्वथा रहित होते हैं। केवली के चारित्र मोहनीय कर्म का सर्वथा क्षय हो जाता है, उनका संयम निरतिचार होता है, मूल और उत्तर गुण सम्बन्धी दोषों का वे प्रतिसेवन नहीं करते। इसलिए वे उक्त सात बोलों का सेवन नहीं करते। (ठाणंग सूत्र ५५०) ५२५- छद्मस्थ सात बातें जानता और देखता नहीं है सात बातों को छद्मस्थ सम्पूर्ण रूप से न देख सकता है न जान सकता है । (१) धर्मास्तिकाय, (२) अधर्मास्तिकाय, (३) आकाशास्तिकाय, (४) शरीर रहित जीव, (५) शरीर से अस्पृष्ट (विना छूआ) परमाणुपुद्गल, (६) अस्पृष्ट शब्द और (७) अस्पृष्ट गन्ध। केवली इन्हीं को अच्छी तरह जान और देख सकता है । (टाणांग सूत्र ५६७)
SR No.010509
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size15 MB
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