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________________ २१० श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला और शाम को प्रतिक्रमण अर्थात् किए हुए पापों की आलोचना करते हैं। भूल या दोष के लिए प्रायश्चित्त लेते हैं। संयम की रक्षा के लिए उन्हें कठिन परिषह सहने पड़ते हैं। अपने आचार के अनुसार निर्दोष आहार न मिलने पर भूखा रहना पड़ता है। निर्दोष पानी न मिलने पर प्यासे रह जाना पड़ता है। इसी प्रकार सरदी, गरमी, रोग तथा दूसरे के द्वारा दिए गए कष्ट आदि २२ परिषह हैं । इनको समभावपूर्वक सहने से आत्मा बलवान होता है। मुख्य विशेषताएँ जैनधर्म की चार मुख्य विशेषताएँ हैं। भगवान् महावीर के उपदेशों में सब जगह इनकी झलक है । इन्हीं के कारण जैन धर्म विश्वधर्म बनने और विश्व में शान्ति स्थापित करने का दावा करता है। वे चार निम्नलिखित हैं अहिंसावाद संसार के सभी प्राणी मुख चाहते हैं। जिस प्रकार सुख हमें प्यारा लगता है उसी प्रकार वह दूसरों को भी प्यारा है । जब हम दूसरे का सुख छीनने की कोशिश करते हैं तो दूसरा हमारा मुख छीनना चाहता है । सुख की इसी छीनाझपटी ने दुनियाँ को अशान्त तथा दुखी बना रखा है। इस अशान्ति को दूर करने के लिए जैन दर्शन कहता है तुमंसि नाम तं चेव, जं हंतव्वं ति मनसि । तुमंसि नाम तं चेव जं अज्जावेयव्वं ति मनसि । तुमंसि नाम तं चेव, जंपरितावेयव्वं ति मनसि ।तुमंसि नाम तं चेव जं परिघेतव्वं ति मनसि । एवं तुमंसि नाम तं चेव, जं
SR No.010509
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size15 MB
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