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________________ १९४ भी सेठिया जैन अन्यमाला 'वीर' शब्द को कलङ्कित करना है। उस पुरुष को नृशंस, क्रूर, हत्यारा कहा जा सकता है.वीर नहीं। अगर इस प्रकार आधक पाप करने वाले को वीर कहा जाय तो सफलता पूर्वक अधिक झूठ बोलने वाला, चोरी करने वाला, व्यभिचारी तथा आडम्बरी भी वीर कहा जायगा। वीर शब्द का असली अर्थ है उत्साहपूर्ण । जिस व्यक्ति में जितना अधिक उत्साह है वह उतना ही अधिक वीर कहा जायगा । वीर जो कार्य करता है अपना कर्तव्य समझ कर उत्साह पूर्वक करता है। युद्ध में शत्रुओं का नाश करना न्यायरक्षा के लिए वह अपना कर्तव्य समझता है। अगर वह राज्यप्राप्ति आदि किसी स्वार्थ को लेकर युद्ध करता है तो वह वीरों की कोटि से गिर जाता है । युद्ध करते समय उसके हृदय में द्वेष के लिए लेशमात्र भी स्थान नहीं रहता।द्वेष या क्रोध कायरता की निशानी हैं। इसी लिए प्राचीन वीर दिन भर युद्ध करके सायङ्काल अपने शत्रुओं से प्रेम पूर्वक मिलते थे । जो योद्धा अपने शत्रु पर क्रोध करता है, उससे द्वेष करता है उतनी ही उसमें कायरता है। यह सर्वमान्य बात है कि कमजोर को क्रोध अधिक होता है। द्वेष, हिंसा, क्रूरता, क्रोध आदि दोष हैं और वीरता गुण। इनमें अन्धकार और प्रकाश जिनता अन्तर है। जिस व्यक्ति का जिस तरफ अधिक उत्साह है वही उस विषय का वीर माना जाता है । इसीलिए युद्धवीर की तरह दानवीर, धर्मवीर और कर्मवीर भी माने गए हैं । हिंसा अर्थात् द्वेष या ईर्ष्या का न होना सभी तरह के वीरों के लिए आवश्यक है। महात्मा गान्धी ने एक जगह लिखा है- मेरा अहिंसा का सिद्धान्त एक विधायक शक्ति है । कायरता या दुर्बलता के लिए
SR No.010509
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size15 MB
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