SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 210
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह १७७ -- RAAN पदार्थों में उनके विशेष धर्मों की तरफ उपेक्षा करते हुए सामान्य घटत्व या पटत्व रूप धर्म से सभी घटों को एक समझना और सभी पटों को एक समझना भी संग्रह नय है। सामान्य धर्म के अनुसार संग्रह नय भी अनेक प्रकार का है । सामान्य धर्म जितना विशाल होगा संग्रह नय भी उतना ही विशाल होगा। सामान्य धर्म का विषय जितना संक्षिप्त होगा संग्रह नय भी उतना ही संक्षिप्त होगा। जो विचार किसी सामान्य तत्त्व को लेकर विविध वस्तुओं का एकीकरण करने की तरफ प्रवृत्त हो उसे संग्रह नय कहा जाता है। विविध वस्तुओं का एक रूप से ग्रहण कर लेने पर भी जब उनके विषय में विशेष समझने की इच्छा होती है उनका व्यवहारिक उपयोग करने का मौका आता है तब उनका विशेष रूप से भेद कर पृथक्करण किया जाता है। केवल वस्त्र कह देने से भिन्न भिन्न प्रकार के वस्त्रों की समझ नहीं पड़ती। जिस को खद्दर या मलमल किसी विशेष प्रकार का वस्त्र लेना है वह उसमें बिना विभाग डाले अपनी इच्छानुसार वस्त्र नहीं प्राप्त कर सकता । इसलिए कपड़े में खादी, मिल का बना हुआ, रेशमी आदि अनेक भेद हो जाते हैं । इसी प्रकार तत्त्वों में सद्रूप वस्तु चेतन और जड़ दो प्रकार की है। चेतन भी संसारी और मुक्त दो प्रकार का है इत्यादि भेद पड़ जाते हैं। इस प्रकार व्यावहारिक दृष्टि से पृथक्करण करने वाले सभी विचार व्यवहार नय के अन्तर्गत हैं। नैगम नय का विषय सब से अधिक विशाल है क्योंकि वह लोकरूढि के अनुसार सामान्य और विशेष दोनों को कभी मुख्य कभी गौण भाव से ग्रहण करता है। संग्रह केवल
SR No.010509
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy