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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह १२१ में एक विधर्मी भिक्षु यमक बुद्ध के कथनों से यह निष्कर्ष निकालता है कि मरने के बाद तथागत अर्थात् बुद्ध सर्वथा नष्ट होजाता है, मिट जाता है, उसका अस्तित्व ही नहीं रहता, केवल शून्य रह जाता है । सारिपुत्त को यह अर्थ स्वीकार नहीं है । बहुत प्रश्नोत्तर के बाद सारिपुत्त यमक से कहता है कि तथागत को तुम जीवन में तो समझ ही नहीं सकते, भला, मरने के बाद क्या समझोगे ? स्वयं बौद्धों ने इसे दो तरह से समझा । कुछ ने तो क्षणिकवाद के प्रभाव से यह समझा कि निर्वाण के बाद आत्मा में प्रतिक्षण परिवर्तन नहीं हो सकता। अतः आत्मा का अस्तित्व मिट जाता है। पर कुछ लोगों ने इस मत को स्वीकार नहीं किया और निर्वाण के बाद शरीरान्त होने पर चेतना का अस्तित्व माना। जब निर्वाण के बाद की अवस्था पर मतभेद था तब दार्शनिक दृष्टि से आत्मा के अस्तित्व के बारे में मतभेद होना स्वाभाविक था। कुछ बौद्ध दार्शनिकों का मत है कि वस्तुतः आत्मा कुछ नहीं है, केवल उत्तरोत्तर होने वाली चेतन अवस्थाओं का रूप है. कोई स्थायी, अनश्वर. नित्य या अनन्त वस्तु नहीं है. प्रतिक्षण चेतन का परिवर्तन होता है. वही आत्मा है. परिवर्तन बन्द होते ही अवस्थाओं का उत्तरोत्तर क्रम टूटते ही आत्मा विलीन हो जाता है, मिट जाता है । इसके विपरीत अन्य बौद्ध दार्शनिक आत्मा को पृथक् वस्तु मानते हैं। वे परिवर्तन स्वीकार करते हैं पर आत्मा के स्वतन्त्र अस्तित्व के आधार पर । प्रतिक्षण परिवर्तन तो जड पदार्थों में भी होता है पर जड और चेतन एक नहीं है, भिन्न भिन्न हैं । आत्मा न निरी वेदना है, न निरा विज्ञान है, न केवल संज्ञा है । ये सब लक्षण या
SR No.010509
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size15 MB
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