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________________ श्रो सेठिया जैन ग्रन्थमाला (३) भोजन रसादि धातुओं को सम करने वाला होता है । (४) भोजन धातु बढ़ाने वाला होता है। (५) भोजन जठराग्नि का बल अर्थात् पाचन शक्ति को बढ़ाने वाला होता है। (६) भोजन बल अर्थात् उत्साह बढ़ाने वाला होता है। (ठाणांग ६ सूत्र ५३३) ४८७- छः विष परिणाम (१) दष्टविष- दाढ़ आदि का विष जो डसे जाने पर चढ़ता है दष्ट विष कहलाता है । यह विष जङ्गम विष है। (२) मुक्त विष- जो विष खाया जाने पर चढ़ता है वह भुक्त . विष है । यह स्थावर विष है। । (३) निपतित विष- जो विष ऊपर गिरने से चढ़ जाता है वह निपतित विष है। दृष्टिविष और त्वग्विष निपतित विष में ही शामिल हैं। (४) मांसानुसारी विष- मांस पर्यन्त फैल जाने वाला विष मांसानुसारी विष है। (५) शोणितानुसारी विष- शोणित ( लोही) पर्यन्त फैल जाने वाला विष शोणितानुसारी विष है। (६) अस्थिमिञ्जानुसारी विष- अस्थि में रही हुई मज्जा धातु तक असर करने वाला विष अस्थिमिञ्जानुसारी विष है। पहले तीन विष परिणाम स्वरूप की अपेक्षा और अन्तिम तीन कार्य की अपेक्षा हैं। (ठाणांग ६ सूत्र ५३३) ४८८-छः अनन्त जिस वस्तु का अन्त न हो उसे अनन्त कहते हैं । इसके छः
SR No.010509
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size15 MB
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