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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह ८३ (१) द्विक संयोगी भङ्गों में नवमा भङ-क्षायिक-पारिणामिक भाव सिद्धों में होता है। सिद्धों में ज्ञान दर्शन आदि क्षायिक तथा जीवत्व आदि पारिणामिक भाव हैं। (२) त्रिक संयोगी भङ्गों में पाँचवां भङ्ग-औदयिक-नायिकपारिणामिक केवली में पाया जाता है। केवली में मनुष्य गति आदि औदयिक, ज्ञान दर्शन चारित्र आदि नायिक तथा जीवत्व आदि पारिणामिक भाव हैं। (३) त्रिक संयोगी भङ्गों में छठा भङ्ग-औदयिक-क्षायोपशमिकपारिणामिक चारों गतियों में होता है। चारों गतियों में गति आदि रूप औदयिक, इन्द्रियादि रूप सायोपशमिक और जीवत्व आदि रूप पारिणामिक भाव हैं। (४) चतुस्संयोगी भङ्गों में तीसरा भङ्ग - औदयिक-औपशमिक-तायोपशमिक-पारिणामिक चारोंगतियों में पाया जाता है। चारों गतियों में गति आदि औदयिक, सम्यक्त्व आदि __ औपशमिक, इन्द्रियादि क्षायोपशमिक और जीवत्व आदि पारिणामिक भाव हैं। नोट:-नरक, तियञ्च और देव गति में प्रथम सम्यक्त्व की प्राप्ति के समय ही उपशम भाव होता है और मनुष्य गति में सम्यक्त्व प्राप्ति के समय तया उपशम श्रेणी में भौपशमिक भाव होता है। (५) चतुस्संयोगी भङ्गों में चौथा भङ्ग- औदयिक-नायिकचायोपशमिक-पारिणामिक चारोंगतियों में पाया जाता है। चारों गतियों में गति आदि औदयिक,सम्यक्त्व आदि शायिक, इन्द्रियादिक्षायोपशमिक और जीवत्व आदि पारिणामिक भाव हैं। (६) पंच संयोग का भङ्ग उपशम श्रेणी स्वीकार करने वाले सायिक सम्यग्दृष्टि जीव में ही पाया जाता है, क्योंकि उसी में
SR No.010509
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size15 MB
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