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________________ श्रीजैन सिद्धान्त बोल संग्रह अर्थात् एक भी अवयव शास्त्रोक्त प्रमाण के अनुसार न हो वह हुंडक संस्थान है। (ठाणांग ६ सूत्र ४६५ ) (जीवाभिगम प्रतिपत्ति १ सूत्र १८) (कर्मग्रन्थ भाग १ गाथा ४०) (प्रवचनसारोद्वार गाथा १२६८) ४६९-अजीव के छः संस्थान (१) परिमंडल-चूड़ी जैसा गोल आकार परिमंडल संस्थान है। (२) वृत्त-कुम्हार के चक्र जैसा आकार वृत्त संस्थान है। (३) व्यस्र-सिंघाड़े जैसा त्रिकोण आकर व्यस्र संस्थान है। (४) चतुरस्र- बाजोठ जैसा चतुष्कोण आकार चतुरस्र संस्थान है। (५) आयत- दंड जैसा दीर्घ (लम्बा) आकार आयत संस्थान है। (६) अनित्यंस्थ-विचित्र अथवा अनियत आकार जो परिमंडलादि से बिल्कुल विलक्षण हो उसे अनित्यंस्थ संस्थान कहते हैं। वनस्पतिकाय एवं पुद्गलों में अनियत आकार होने से वे अनित्यंस्थ संस्थान वाले हैं। किसी प्रकार का आकार न होने से सिद्ध जीव भी अनित्यंस्थ संस्थान वाले होते हैं । (भगवती शतक २५ उद्देशा ३) (पनवणा पद१,२) (जीवाभिगम प्रतिपत्ति १) ४७०- संहनन (संघयण) छः हड्डियों की रचना विशेष को संहनन कहते हैं । इस के छः भेद हैं। (१) वज्रऋषभ नाराच संहनन- वज्र का अर्थ कील है, ऋषभ का अर्थ वेष्टन पट्ट (पट्टी) है और नाराच का अर्थ दोनों ओर से मर्कट बन्ध है । जिस संहनन में दोनों ओर से मर्कट बन्ध द्वारा जुड़ी हुई दो हड्डियों पर तीसरी पट्ट की आकृति
SR No.010509
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size15 MB
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