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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह ४२ हेतु — जो साध्य के विना न रहे उसे हेतु कहते हैं । जैसे का हेतु धूम | धूम, विना अनि के कभी नहीं रहता । माध्य:- जो सिद्ध किया जाय वह साध्य है। माध्य वादी को इष्ट, प्रत्यक्षादि प्रमाणों से अबाधित और अमिद्ध होना चाहिए । जैसे पर्वत में अग्नि है क्योंकि वहाँ धुआँ हैं । यहां अनि माध्य है । वादी को अभिमत है । प्रत्यक्ष आदि प्रमाणों से बाधित है और पर्वत में अभी तक सिद्ध नहीं की गई है । अतः अमिद्ध भी हैं । (रत्नाकरावतारिका परिच्छेद ३ ) 66 ४३ - कार्य:- मम्पूर्ण कारणों का संयोग होने पर उनके व्यापार (क्रिया) के अनन्तर जो अवश्य होता है। उसे कार्य कहते हैं । कारण- जो नियत रूप से कार्य के पहले रहता हो और कार्य में साधक हो । अथवा: -- जिसके न होने पर कार्य न हो उसे कारण कहते हैं। जैसे कुम्भकार, दण्ड, चक्र, चीवर और मिट्टी आदि घट के कारण हैं I ( न्यायकोष ) ४४ - आविर्भावः - पदार्थ का अभिव्यक्त ( प्रकट ) होना आविर्भाव है । तिरोभावः - पदार्थ का अप्रकट रूप में रहना या होना तिरोभाव हैं। जैसे घास में घृत तिरोभाव रूप से विद्यमान हैं । किन्तु मक्खन के अन्दर घृत का आविर्भाव है । अथवा सम्यगदृष्टि
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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