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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल मंग्रह १७ २३ - इन्द्रिय को व्याख्या और मंद: - इन्द्र अर्थात् आत्मा जिससे पहचाना जाय उसे इन्द्रिय कहते हैं । जैसे एकेन्द्रिय जीव स्पर्शनेन्द्रिय से पहचाना जाता हैं 1 इन्द्रिय के दो भेदः - ( १ ) द्रव्येन्द्रिय ( २ ) भावेन्द्रिय । द्रव्येन्द्रियः - चतु आदि इन्द्रियों के बाह्य और आभ्यन्तर पौद् गलिक आकार ( रचना ) को द्रव्येन्द्रिय कहते हैं । भावेन्द्रियः — आत्मा ही भावेन्द्रिय हैं । भावेन्द्रिय लब्धि और उपयोग रूप होती है । ( पनवरा पद १५ ) ( तत्त्वार्थ सूत्र अध्याय २ ) २४-द्रव्येन्द्रिय के दो भेद: (१) निर्वृत्ति द्रव्येन्द्रिय ( २ ) उपकरण द्रव्येन्द्रिय निवृत्ति द्रव्येन्द्रियः इन्द्रियों के आकार विशेष को निर्वृत्ति द्रव्येन्द्रिय कहते हैं। उपकरण द्रव्येन्द्रिय:- दर्पण के समान अत्यन्त स्वच्छ पुद्गलों की रचना विशेष को उपकरण द्रव्येन्द्रिय कहते हैं । उपकरण द्रव्येन्द्रिय के नष्ट हो जाने पर आत्मा विषय को नहीं जान सकता । ( तत्त्वार्थ सूत्र अध्याय २ ) २५- भावेन्द्रिय के दो भेद: - ( १ ) लब्धि ( २ ) उपयोग लब्धि भावेन्द्रिय: - ज्ञानावरणीय आदि कर्मों के क्षयोपशम होने पर पदार्थों के ( विषय के) जानने की शक्ति को लब्धिभावेन्द्रिय कहते है ।
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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