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________________ श्री सठिया जैन ग्रन्थमाला केवली समुद्रात के आठ ममयों में से तीसरे, चौथे और पांचवे समय में जीव अनाहारक रहता है । (ठाणांग २ सूत्र ७६) ह-निगोदः-माधारण नाम कम के उदय से एक ही शरीर को आश्रित करके जो अनन्त जीव रहते हैं वे निगोद कहलाने हैं । निगोद के जीव एक ही माथ आहार ग्रहण करने हैं। एक माथ श्यामोच्छवाम लेने हैं और माथ हो आयु बांधने हैं और एक ही माय शरीर छोड़ने हैं । निगोदके दो भेद हैं--(१) व्यवहार गशि (२) अव्यवहार गशि । व्यवहार गशि:--जिन जोयों ने एक सार भी निगोद अवस्था छोड़ कर दुमा जगह जन्म निया है ये व्यवहार गशि हैं। ग्रव्यवहार गशिः--जिन जीवों ने कभी भी निगोद अवस्था नहीं छोड़ी है जो अनन्त काल से निगोद में हा पड़े हुए हैं व अव्यवहार गशि हैं। (मैन प्रश्न उल्लाम २-४) ५०-मम्यक्य के चार प्रकार से दो दो भेद । १ दव्य सम्यक्त्व २ भाव सम्यक्त्व १ निश्चय सम्यक्त्व २ व्यवहार सम्यक्त्व १ नैसर्गिक सम्यवन्ध २ आधिगमिक सम्यक्त्व १ पाद्गलिक सम्यक्त्व २ अयोद्गलिक मम्यक्त्व द्रव्य सम्यक्त्वः -विशुद्ध किये हुए मिथ्यात्व के पुद्गलों को द्रव्य सम्यक्त्व कहने हैं। नावमम्यक्त्रः--जैसे उपनेत्र (चश्मे) द्वारा आंखें पदार्थों को •पट रूप स देख लेना है उसी तरह विशुद्ध किये हुए
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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