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________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला दूसरा बोल (बोल नम्बर ७ से १२ तक ) ७ ( क ) गशि की व्याग्न्या गशिः-वस्तु के समूह को गशि कहते हैं । गशि के दो भंढः(१) जीव गशि ( २ ) अजीव राशि । (समवायांग १४६ ) ७ ( ख ) जावः-जो चेतनायुक्त हो तथा द्रव्य और भाव प्राण वाला हो उसे जीव कहते हैं। जीव के दो भेद हैं। (१) ममार्ग ( २ ) मिद्ध मंमाग-कर्मों के चक्र में फस कर जो जीव चौवाम दण्डक और चार गनियों में परिभ्रमण करता है उस मंमागे कहते हैं। सिद्ध-सर्व कर्मों का क्षय करके जो जन्म मरण रूप मंमार स मुक्त हो चुके हैं उन्हें सिद्ध कहते हैं । (ठाणांग २ सूत्र १०१) (तत्त्वार्थ सूत्र अध्याय २ मत्र १०) :-नव प्रकार से मंमागे जाव के दो दो भदः१ त्रम २ स्थावर १ मूम २ बादर १ पर्याप्त २ अपर्याप्त १ मंज्ञा २ अमझो १ पग्नि ( अल्प ) समाग २ अनन्त संमागे १ मुलभ बोधि २ दुर्लभ बोधि
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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