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________________ * श्री वर्द्धमान स्वामिने नमः * श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह मंगलाचरण जयइ जग जीव जोणी बियाणो, जग गुरु जगाणंदो। जगणाहो जगवन्ध जयइ जगप्पियामहो भयवं ॥ १ ॥ जयइ सुप्राणं पभवो. तिन्थयगणं अपच्छिमो जयइ । जयइ गुरु लोगाणं जयइ महप्पा महावीगे ॥२॥ (श्री नन्दी मूत्र) भावार्थ:-सम्पूर्ण मंमार और जीवों के उत्पति के स्थान को जानने वाले तीर्थकर सदा विजयवन्त रहें । तीर्थकर भगवान् जगत् के गुरु, जगत् को आध्यात्मिक आनन्द देने वाले, जगत् के नाथ, जगन् के बन्धु तथा जगत् के पितामह हैं ॥१॥ द्वादशांग रूप वाणी के प्रकट करने वाले, तीर्थंकरों में अन्तिम नीर्थकर, त्रिलोक के गुरु तथा महात्मा भगवान् महावीर स्वामी मदा विजयवन्त रहें।
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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