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________________ विषय श्रमण ( समरण, समन) की चार व्याख्याएं [ ५१ ] बोल नम्बर विषय १७८ श्रमणोपासक (श्रावक ) के तीन मनोरथ श्रमण वनोपक श्रावक के चार प्रकार श्रावक के अन्य चार प्रकार श्रावक के चार विश्राम श्रावक के पांच अभिगम श्रावक के बारह व्रतों के अतिचार श्रुतज्ञान श्रुतज्ञान श्रुतज्ञान के दो भेद श्रुतज्ञानावरणीय भूत धर्म श्रुत धर्म के दो भेद श्रुत में राग श्रुत विनय के चार प्रकार श्रुत व्यवहार श्रुत सामायिक श्रेणी के दो भेद श्रोत्रेन्द्रिय श्वा वनीपक ३०१ से ३१२ तक ३७५ 18:1 संक्रम (संक्रमण) की व्याख्या और उसके भेद संख्यात जीविक वनस्पति ३७३ संख्या दत्तिक ३५४ १८४ | संघात नाम कर्म के पांच भेद ३६१ संज्ञा की व्याख्या और भेद १४२ ८ १८५ १८८ ३१४ 1 I I संज्ञी I बोल नम्बर संज्वलन संभोगी साधुओं को अलग करने के पांच बोल सम्मोही भावना के पांच प्रकार संयतासंयती १५ १६ ३७८ संयती १८० संयम १६ संयम पांच ८१ संयुक्ताधिकरण २३१संयोजना ३६३ संयोजना प्रायश्चित्त १६० संरम्भ ६४ ५६ संलेखना के पांच प्रतिचार ३१३ ३६२ संवत्सर पांच ४०० ३७३ संवृत बकुश संवृत्त यो २५० १५८ ३४५ ४०६ ६६ ६६ ३५१ २६८ ३०८ ३३० २४५ ३६८ ६७
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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