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________________ ३५२ [ ४८ 1 विपय बोल नम्बर | विषय बोल नम्बर राजकथा चार १५२ लाघव ३५० राजा को ऋद्धि के तीन भेद १०१ ' लाभान्तराय ३८८ गजा के अन्तःपुर में साधु के लिङ्ग कुशील ३६६ प्रवेश करने के पांच कारण ३३८ लिङ्ग पुलाक ३६७ राजावग्रह ३३४ लक्ष चरक राशि की व्याख्या (क)७ लूनाहार ३५६ सचि १२७ लोक की व्याख्या और भेद ६५ रूपन्थ धर्म ध्यान २२४ लोकवादी रूपातीत धर्म ध्यान २२४ लोकाकाश रूपानुपात ३१० लोकान्त से बाहर जीव और रूपी ६० पुद्गल के न जग सकने के चार रूपी के दो भेद ६१ कारण २६८ रोचक ममकित ८० लोभ १५८ रौद्र ध्यान २१५ लोभ के चार भेद और उनकी गैद्र ध्यान के चार प्रकार २१८ । उपमाएं रौद्र ध्यान के चार लक्षण २१६ १६१ वचन गुप्ति (म्ब) १२८ लक्षण की व्याख्या और भेद ६२ वचन योग लक्षण संवत्सर ४०० वरिहदसा लक्षणाभास की व्याख्या और वध भेद १२० , वनस्पति के तीन भेद ७० लगण्डशायी ३५६ वनीपक की व्याख्या और भेद ३७३ लब्धि भावेन्द्रिय २५ वयः स्थविर ६१
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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