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________________ [ ४६ ] बोल नम्बर विषय विपय मनः पर्यय ज्ञान मनः पर्यय ज्ञान की व्याख्या और भेद मन:पर्ययज्ञानी जिन } ३७५ माया के चार भेद और उनकी उपमाएं १४ ७४ ३७८ ५३ ३१३ | ૨ मन:पर्ययज्ञानावरणीय मरा के दो भेद मरणाशंसाप्रयोग मपि कर्म महानिर्जरा और महापर्यवमान के पांच बोल ६६० महानिर्जरा और महापर्यत्रमान के पांच बोल ३६१ मात्र की व्याख्या और भेद ३१६ ५६ १२३ महामामान्य माना के तीन अङ्ग माता पिता का प्रत्युपकार दुःशक्य है १२४ माता पिता के समान श्रावक १८४ माध्यस्य भावना मान मान के चार भेद और उनको उपमाएं माया माया प्रत्यया माया शल्य मार्ग दपण मार्ग विप्रतिपत्ति मार्दव मासिक उद्घातिक अनुद्घाति मित्र के समान श्रावक मिध्यात्व मिध्यात्व पांच मिध्यात्व प्रतिक्रमण मिथ्या दर्शन मिथ्यादर्शनप्रत्यया मिथ्यादर्शन शल्य मिश्र दर्शन मिश्रभापा बोल नम्बर मुक्ति मुख्य २४६ | मूल गुग्ण १५८ मूल सूत्र चार १६१ २६३ १०४ ४०६ ४०६ ३५० ३२५ ३२५ १८४ २८६ २८८ ३२६ ७७ २६३ १०४ ७७ २६६ ३५० ३८ ५५ २०४ मृषावाद विरमण महाव्रत ३१६ १६० | मृपावाद विरमरण रूप द्वितीय १५८ | महाव्रत की पांच भावनाएं ३१८
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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