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________________ [ छ ] 364 खजाना अनधिज्ञानी आवारण पूंछाना अठारह लड़ी स्वमी स्त्रियों देवियों राजग्रह सर्वधाती कर्मगन्थ धधुप रसनानेन्द्रिय खज़ाने अवधिज्ञानी आवरण पूछाना अठारह लड़ा स्वामी स्त्रियाँ देवियाँ राजगृह सर्वघाती कर्मग्रन्थ 400 402 403 403 403 408 412 413 416 423 426 430 रसनेन्द्रिय की ऋतु किल्विषी सुवर्णादि ऋतु किल्वषी सुवर्णदि तिश्चर्य नोट- छूटे हुए पाठः 433 तिर्यञ्च 435 पश्चानुपूर्वी:-जिस क्रम में अन्त से प्रारम्भ कर उलटे क्रम से गणना की जाती है, उसे पश्चानुपूर्वी कहते हैं / जैसे:-काल, पुद्रलास्तिकाय जीवास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और धर्मास्तिकाय / पृष्ठ 104 में 19 वीं पंक्ति से आगे:-अर्थात इन भावनाओं वाला जीव यदि कदाचित् देवगति प्राप्त करे तो हीन कोटि का देव होता है। पश्चात् बचे हुए श्राहार की गवेषणा करने वाला साधु अन्तचरक कहलाता है।
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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