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________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला आजाता है। ऐसी निद्रा में मरने वाला जीव, यदि आयु न बाँध चुका हो तो, नरक गति में जाता है। (कर्म ग्रन्थ प्रथम भाग) (पन्नवणा पद 23) ४२०--निद्रा से जागने के पाँच कारण: (1) शब्द . (2) स्पर्श / (3) क्षुधा (4) निद्रा क्षय / (5) स्वम दर्शन। इन पाँच कारणों से सोये हुए जीव की निद्रा भङ्ग हो जाती है और वह शीघ्र जग जाता है / (ठाणांग 5 उद्देशा 2 सूत्र 436) ४२१--स्चम दर्शन के पांच भेदः (1) याथातथ्य स्वम दर्शन (2) प्रतान स्वम दर्शन / (3) चिन्ता स्वप्न दर्शन (4) विपरीत स्चम दर्शन / (5) अव्यक्त स्वम दर्शन। (1) याथातथ्य स्वम दर्शनः-स्वम में जिस वस्तु स्वरूप का दर्शन हुआ है / जगने पर उसी को देखना या उसके अनुरूप शुभाशुभ फल की प्राप्ति होना याथातथ्य स्वम दर्शन है। (2) प्रतान स्वम दर्शन:-प्रतान का अर्थ है विस्तार / विस्तार वाला स्वम देखना प्रतान स्वम दर्शन है / वह यथार्थ और अयथार्थ भी हो सकता है। (3) चिन्ता स्वम दर्शनः-जागृत अवस्था में जिस वस्तु की चिन्ता रही हो उसी का स्वम में देखना चिन्ता स्वम दर्शन है।
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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