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________________ ३७ २०८ ४२२ यूपकार [ ३६ ] विषय बोल नम्बर ; विषय बोल नम्बर धर्म तत्त्व धर्मदेव ४२२ नन्दीसूत्र का विषय परिचय २०४ धर्म ध्यान २१६ नक्षत्र संवत्सर धर्म ध्यान की चार भावनाएं २२३ नपुंसक वेद ६८ धर्म ध्यान रूपी प्रासाद पर नय चढ़ने के चार आलम्बन २२२ नय धर्म ध्यान के चार लिङ्ग २२१ नय के दो भेद धर्मध्यान के चार प्रकार २२० नरक आयु बन्ध के चार धर्मध्यान के चार भेद २२४ । कारण धर्म पुरुपार्थ १६४ नरदेव धर्माचार्य का प्रत्युपकार नव प्रकार से संसारी जीव दुःशक्य है १२४ के दो दो भेद धर्मास्तिकाय २७६ नवीन उत्पन्न देवता के मनुष्य । धर्मास्तिकायके पांच भेद २७७ लोक में आने के तीन कारण ११० धर्मोपकरण दान १६७ : नाम अनन्तक धाय (धात्री) पांच ४०८ । नाम निक्षेप २०६ धारणा २०० निकाचित की व्याख्या और धारणा व्यवहार ३६३ भेद धार्मिक पुरुप के पांच आलम्बन निक्षिप्त चरक ३५२ स्थान ३३३ निक्षेप २०८ ३३० निक्षेप चार २०६ ध्मात वायु ४१३ निगमन ध्यान की व्याख्या और भेद २१५ निगोद ध्रौव्य ६४ निदान शल्य निद्रा २५२ धूम ३८० १०४
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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