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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संयह 405 (5) वण्हिदसा:-पञ्चम वर्ग वण्हिदसा के बारह अध्ययन हैं(१) निसढ़। (2) माणि। (3) वह / (4) वहे। (5) पगया। (6) जुत्ती। (7) दसरह / (8) दढरह। (8) महाधरण। (10) सत्तधरण। (11) दम धरण। (12) सय धरण। इनमें पहले अध्ययन की कथा विस्तार पूर्वक दी गई है / शेप ग्यारह अध्ययन के लिये संग्रहणी की सूचना दी है। निमढ़ कुमार द्वारिका नगरी के बलदेव राजा की रेवती रानी के पुत्र थे। भगवान् अरिष्टनेमि के द्वारिका नगरी के नन्दन वन में पधारने पर निसढ़ कुमार ने भगवान् के दर्शन किये और उपदेश श्रवण किया। उपदेश सुन कर कुमार ने श्रावक के बारह व्रत अङ्गीकार किये। प्रधान शिष्य वरदत्त अणगार के पूछने पर भगवान् पार्श्वनाथ ने निसढ़ कुमार के पूर्वभव की कथा कही। पूर्वभव में निसढ़ कुमार भरतक्षेत्र के रोहीडक नामक नगर में महाबल राजा के यहाँ पद्मावती रानी की कुक्षि से पुत्र रूप में उत्पन्न हुए। इनका नाम वीरगद था। इन्होंने सिद्धार्थ आचार्य के पास दीक्षा ली। 45 वर्ष की दीक्षा-पर्याय पाल कर वीरङ्गद कुमार ने संथारा किया और ब्रह्म देवलोक में देवता हुए / वहाँ से चव कर ये निसढ़ कुमार हुए हैं।
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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