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________________ 366 श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला वह नहीं रहता / जैसे:-ऊपर के दृष्टान्त में धूम के सद्भाव में अग्नि का सद्भाव और अग्नि के अभाव में धूम का अभाव होता है। यहां धूम, अग्नि का साधन है। अनुमान के दो भेदः (1) स्वार्थानुमान / (2) परार्थानुमान / ___ स्वयं साधन द्वारा साध्य का ज्ञान करना स्वार्थानुमान है / दूसरे को साधन से साध्य का ज्ञान कराने के लिए कहे जाने वाला प्रतिज्ञा, हेतु आदि वचन परार्था नुमान है। (5) आगमः-प्राप्त (हितोपदेष्टा सर्वज्ञ भगवान् ) के वचन से उत्पन्न हुए पदार्थ-ज्ञान को आगम कहते हैं / उपचार से प्राप्त का वचन भी आगम कहा जाता है। जो अभिधेय वस्तु के यथार्थ स्वरूप को जानता है, और जैसा जानता है उसी प्रकार कहता है / वह प्राप्त है / अथवा रागादि दोषों के क्षय होने को प्राप्ति कहते हैं / प्राप्ति से युक्त पुरुष आप्त कहलाता है / (रत्नाकरावतारिको परिच्छेद 3 व 4] ३८०:-परार्थानुमान के पांच अङ्गः (1) प्रतिज्ञा (2) हेतु / (3) उदाहरण. (4) उपनय / (5) निगमन / (1) प्रतिज्ञाः-पक्ष और साध्य के कहने को प्रतिज्ञा कहते हैं / जहाँ हम साध्य को सिद्ध करना चाहते हैं वह पक्ष है यानि
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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